Demonetisation: आज की तारीख 8 नवंबर शायद ही कोई भूला होगा, क्योंकि यह वही तारीख है जब 5 साल पहले केंद्र की मोदी सरकार ने काले धन के खिलाफ बड़ा कदम उठाते हुए देशवासियों को तगड़ा झटका दिया था और आज तक नाेटबंदी को लेकर सरकार की आलाेचना होती रहती है। देखते ही देखते इसे पूरे 6 साल होने को है। तो चलिए अब हम अहम मुद्दे पर बात करते है कि, आखिर नोटबंदी के बाद कितना क्या बदलाव देखा गया एवं नोटबंदी का फैसला अपना लक्ष्य हासिल कर पाया है या नहीं, नोटबंदी सफल या असफल कई सवाल उठते है। नोटबंदी की वर्षगांठ पर एक नजर हमारे इस लेख पर भी...
आज नोटबंदी की 6वीं वर्षगांठ है, ऐसे में मोदी सरकार अभी तक अपने इस Demonetisation के फैसले को सफल ही करार बताई आई है, लेकिन विपक्ष अभी तक नोटबंदी के फैसले को पूरी तरह असफल करार बताते हुए आज तक उन्हें (मोदी सरकार) कोसता नजर आता है। नोटबंदी पर बहसबाजी आज भी होती रहती है। दरअसल, 8 नवंबर, 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक रातों-रात देश को संबोधित किया गया, इस दौरान पहले तो सभी को यह लगा था कि, कोई सामान्य संबोधन ही होगा, लेकिन उनका यह सामान्य संबोधन नहीं बल्कि बेहद ही खास और महत्तपूर्ण था, क्योंकि इस दौरान उन्होंने 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद कर करने का ऐलान किया था, यह वो समय था जब लोग 1000 और 500 के नोटों की काफी अहमियत देने के अलावा अपनी तिजारियों में बंद करके रखते थे, लेकिन PM मोदी की घोषणा के बाद यह सब रद्दी हो गए थे। देश में अफरा-तफरी का माहौल बन गया, लोग पुराने नोट को बैंक में जमा करने और नए नोट हासिल करने के लिए लंबी कतारों में घटों तक खंड़े हुए और कफी परेशानी का सामना कर रहे थे।
नोटबंदी को लेकर यह सवाल मन में आना मूमकिन ही होगा कि, आखिर सरकार को अचानक से यह कदम क्यों उठाया पड़ गया, आखिर क्या था उनका मकसद जो उन्होंने भारतवसियों को झटका दिया था। तो नोटबंदी को लेकर यह कहा जाता है कि, भारत की मोदी सरकार ने यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए ही उठाया था। नोटबंदी का मकसद नोट जब्त करना नहीं, बल्कि कैश को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करनेे के साथ ही बड़े पैमाने पर कैश रखने वाले लोगों को टैक्स सिस्टम के दायरे में लाना था।
तो वहीं, मोदी सरकार द्वारा पुराने नोटों का चलन बंद किए जानें के कुछ दिनों बाद ही सरकार ने 500 का नया नोट एवं 1000 के पुराने नोट की जगह 2000 रुपये का नया नोट जारी किया था।
देश में करेंसी नोटों यानी नकदी का चलन बढ़ता ही जा रहा है।
डिजिटल पेमेंट भी तेजी से लगातार बढ़ रहा है।
लोग कैशलेस पेमेंट मोड को अपनाते जा रहे हैं।
डिजिटल ट्रांजैक्शन में भी वृद्धि हुई है।
क्रेडिट-डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) सभी तरीकों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है।
भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) का UPI देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है।
इन सबके बावजूद चलन में नोटों का बढ़ना धीमी गति से ही सही, लेकिन जारी है।
नोटबंदी का असर :
हालांकि, ऐसा नहीं की नोटबंदी के बाद से सिर्फ फायदे ही हुए हैं, बल्कि इसका कुछ असर भी देखा गया था, यहां तक की लोगों को व्यापार करना कठिन हो गया था व कारोबार ठप पड़ गया था। Demonetisation का सबसे ज्यादा इफेक्ट उन उद्योगों पर पड़ा, जो ज्यादातर कैश में लेनदेन करते थे और इसमें अधिकतर छोटे उद्योग शामिल होते हैं। इसके अलावा नोटबंदी से तात्कालिक रूप से नकदी में कमी जरूर आई थी।
RBI के जारी किये गए आंकड़ें :
RBI के जारी आंकड़ों के मुताबिक, 21 अक्टूबर 2022 तक देश की जनता के पास नकदी बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गई। जबकि 4 नवंबर, 2016 तक 17.7 लाख करोड़ रुपये चलन में थे। जनता के पास नकदी या मुद्रा का मतलब उन नोटों और सिक्कों से माना जाता है, जिनका इस्तेमाल लोग लेन-देन करने, व्यापार करने या सामान और सेवाओं को खरीदने के लिए करते हैं, प्रचलन में मुद्रा से बैंकों में जमा पैसे को घटाकर ये आंकड़ा निकाला जाता है।
नोटबंदी के 6 साल बाद भी यह बात स्पष्ट नहीं हो पाई :
तो वहीं, लोकलसर्किल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी के 6 साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि, नोटबंदी ने लक्ष्य को हासिल किया या नहीं... अगर मौजूदा सबूतों को देखा जाएं तो लोग अभी भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का लेनदेन कर रहे हैं। इसके अलावा हार्डवेयर, पेंट और कई अन्य घरेलू उत्पादों की बिक्री बिना उचित रसीद के ही की जा रही है।
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