राज एक्सप्रेस। अनुभवी अनिल कपूर और आदित्य रॉय कपूर की वेब सीरीज 'द नाइट मैनेजर' में दर्शकों के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। फिल्म की पटकथा और कहानी लेखन काफी साधारण सा लगता है, वहीं अनिल कपूर इस सीरीज में सूट नहीं कर रहे है। बता दें कि, इस सीरीज को लेखक जॉन ले कार्रे की इसी नाम के जासूसी उपन्यास पर बनाया गया है। यह सीरीज लेखक जॉन ले कार्रे के उपन्यास का हिंदी अनुकूलन है।
लेखक जॉन ले कार्रे को जासूसी उपन्यासों का पितामह कहा जाता है। साल 2016 में सबसे पहले इस उपन्यास पर ओटीटी सीरीज बनी थी जिसका नाम भी द नाइट मैनेजर था, जो इतनी बेहतर तरीके से बनाई गई थी कि 37 पुरस्कारों में नामांकित होने के बाद उसने 11 अवॉर्ड्स जीते थे और 3 गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड भी जीते थे, लेकिन इस उपन्यास की हिंदी अनुकूलन में ऐसा कुछ भी नहीं है। तो चलिए जानते है क्या है अच्छा और क्या है बुरा द नाइट मैनेजर की हिंदी अनुकूलन में
वेब सीरीज का कथानक (Plot)
वेब सीरीज शान सेनगुप्ता (आदित्य रॉय कपूर) के बारे में है, जो एक पूर्व भारतीय नौसेना का अधिकारी हैं और वर्तमान में बांग्लादेश में द व्हाइट फ्लावर रिसॉर्ट के एक नाइट मैनेजर के रूप में काम कर रहा हैं। उसे एक भारतीय खुफिया अधिकारी लिपिका सैकिया राव (तिलोत्तमा शोम) द्वारा हथियारों के सौदागर "शैली" रूंगटा (अनिल कपूर) के गिरोह में घुसपैठ करने के लिए नियुक्त किया जाता है, रूंगटा का किरदार एक अंतरराष्ट्रीय भगोड़ा का है। लिपिका द्वारा आयोजित एक नाटकीय सेट अप के बाद, शान श्रीलंका पहुंचता है और शैली के बेटे ताहा को बचाकर शैली के करीब पहुंच जाता है, सैकिया के निर्देशों के साथ, शान शैली के गिरोह के बीच अराजकता पैदा करने में सफल होता है। बृज लाल की मध्य पूर्व में एक सेट-अप में गिरफ्तारी के बाद, शैली शान को उस कंपनी के सीईओ पद प्रदान कर दे देता है, जिसके बृज पाल पहले सीईओ थे। शान, शैली के इस प्रस्ताव पर अपनी रजामंदी दे देता है और सीज़न 1 इसी सस्पेंस के साथ खत्म हो जाता है। इसके दूसरे सीजन के बाकी के 4 एपिसोड जून 2023 में आएंगे।
अभिनय (Acting):
सीरीज में अनिल कपूर पर शैली का किरदार सूट नहीं करता लेकिन ऐसा कतई भी नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने अभिनय खराब किया है। उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से अपने किरदार को निभाया है, जिसके लिए उन्हें सराहा जाना चाहिए। यही नहीं सीरीज में अन्य अभिनेता और अभिनेत्रियों ने भी सराहनीय काम किया है, चाहे वो आदित्य रॉय कपूर हो, सोभिता धूलापल्ली हो या बंगाली फिल्मों के मंझे हुए और अनुभवी कलाकार सास्वता चटर्जी हो।
पहला एपिसोड (First Episode):
सीरीज के पहले अध्याय में कुल 4 एपिसोड है लेकिन जो सबसे बढ़िया एपिसोड था वो सबसे पहला एपिसोड था जिसकी पटकथा को बॉलीवुड के बहुत ही होनहार और दिमाग को घुमा देने वाली फिल्मों के निर्देशक श्रीधर राघवन ने लिखा हैं। उन्होंने पहले एपिसोड को 2015-16 में बांग्लादेश और म्यांमार में हुई रोहिंग्या मुस्लिमों के पलायन और उस समय में हुए दंगो से जोड़ा था। उन्होंने साल 2015-16 के समय में हुए रोहिंग्या मुस्लिम पलायन वाले पूरी घटनाओं का चित्रण किया है। जिस तरीके से पहले एपिसोड की पटकथा और निर्देशन हुआ है, वही कुछ हद तक दर्शकों को बांधे रखता हैं।
पहले एपिसोड के बाद पटकथा (Screenplay After First Episode):
जहां श्रीधर राघवन द्वारा लिखे गए पहले एपिसोड आपको बंधे रखते है वहीं सीरीज के डायरेक्टर संदीप मोदी द्वारा डायरेक्ट बाकी के तीन एपिसोड की पटकथा बिलकुल ही एवरेज सी हो जाती है। किसी भी किरदार में ना तो जान दिखती है ना हो उनकी कोई कहानी होती है। सीरीज में इतनी छोटी कहानियां बन जाती है जिसे सही तरीके से आगे बढ़ाया ही नहीं जाता है। सीरीज की पटकथा को इतना औसत तरीके से लिखा गया है कि अनिल कपूर के किरदार शैली रूंगटा को देखकर जो खौफ और डर बनना चाहिए था वो बनता ही नहीं है। हालांकि इसके बाकी के 4 एपिसोड इसी साल जून में आने वाले है लेकिन पहले 4 एपिसोड को देखकर बाकी एपिसोड के लिए कोई भी उत्सुकता नहीं जागती है।
कहानी (Story) के साथ सारे विभागो में विफल :
पहले एपिसोड के बाद यह सीरीज सामान्य जासूसी वाली फिल्मों और वेब सीरीज की तरह हो जाती है। कहानी में कुछ भी ऐसा नहीं लगता है कि जो आपको आगे आने वाले 4 एपिसोड का इंतजार कराए। पहले एपिसोड के बाद आपको वही सब देखने को मिलेगा जो आप सभी जासूसी वाली फिल्मों और इससे पहले समान नाम वाली 2016 की हॉलीवुड सीरीज में देखने को मिलता है। कहानी के अलावा भी यह सीरीज एक्टिंग को छोड़कर सारे विभागो में विफल साबित होती है। संगीत, सेट डिजाइन आदि सभी विभागो में यह सीरीज एक औसत बनकर रह जाती है। यहां तक कि इस सीरीज की कास्टिंग भी सही नहीं है। अनिल कपूर एक हथियारों के सौदागर के रोल में जम नहीं रहे है।
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