स्टार कास्ट - मनोज बाजपेयी, स्मिता तांबे, मोहम्मद जीशान अय्यूब
डायरेक्टर - देवाशीष मखीजा
प्रोड्यूसर - शारीक पटेल, देवाशीष मखीजा
फिल्म की कहानी छोटे जाति के दसरू (मनोज बाजपेयी) और उसकी पत्नी वानो (तनिष्ठा चटर्जी) की है जो कि मुंबई स्थित एक कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करते हैं। यह दोनों लगभग छह साल पहले काम की तलाश में झारखंड से मुंबई आए थे। इसी बीच एक दिन स्थानीय इलाके की विधायक करमा फूलो (स्मिता तांबे) दसरू के घर आती है और उसे कहती है कि वो शायद उसे जानती है लेकिन दसरू इस बात से मना करता है। दूसरे दिन जब दसरू घर लौटता है तो वो पाता है कि उसकी पत्नी का मर्डर हो चुका है। हमलावर दसरू के ऊपर भी हमला करते हैं लेकिन दसरू किसी भी तरह जान बचाकर अपनी तीन महीने वर्षीय छोटी बेटी को लेकर वहां से भाग जाता है। पुलिस भी मौके वारदात पर पहुंचती है और वो भी दसरू को ही कसूरवार मानकर उसे पकड़ने के लिए निकल पड़ती है। यह केस सब इंस्पेक्टर रत्नाकर बागुल (मोहम्मद जीशान अय्यूब) को हैंडल करने को मिलता है। रत्नाकर को पता चलता है कि दसरू झारखंड भाग गया है और वो भी दसरू को पकड़ने झारखंड निकल पड़ता है। अब क्या दसरू कभी पुलिस की गिरफ्त में आएगा और वो कौन लोग थे जिन्होंने दसरू की पत्नी का मर्डर किया है। इन सभी सवालों के जवाब आपको फिल्म देखने के बाद पता चलेंगे।
अज्जी और भोसले जैसी बेहतरीन फिल्में बना चुके देवाशीष मखीजा ने फिल्म को डायरेक्ट किया है और उनका डायरेक्शन ठीक है। फिल्म की स्टोरी थोड़ी इनकंप्लीट लगती है और फिल्म का स्क्रीनप्ले भी थोड़ा कन्फ्यूजिंग है क्योंकि साथ-साथ फिल्म में प्रेजेंट और पास्ट दिखाया जा रहा है। फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बढ़िया है और एडिटिंग भी फिल्म की ठीक हुई है। फिल्म का म्यूजिक औसत दर्जे का है लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। फिल्म की प्रोडक्शन वैल्यू और डायलॉग अच्छे हैं।
परफॉर्मेंस की बात करें तो फिल्म के लीड हीरो मनोज बाजपेयी ने दमदार परफॉर्मेंस दी है। स्मिता तांबे भी काफी मंझी हुई कलाकार हैं और अपने किरदार को भी उन्होंने काफी अच्छे से प्ले किया है। मोहम्मद जीशान अय्यूब भी पुलिस ऑफिसर के किरदार में इंप्रेस करते हैं। तनिष्ठा चटर्जी भी कम स्क्रीन स्पेस होते हुए भी इंप्रेस करती हैं। फिल्म के बाकी कलाकारों का काम ठीक है।
कई सारे फिल्म फेस्टिवल में सराहना बटोर चुकी फिल्म जोरम इस हफ्ते सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। फिल्म झारखंड में रह रहे मावो वादियों की दुर्दशा दर्शाती है। इसके अलावा फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे एक पिता अपनी तीन महीने वर्षीय बेटी को अपनी पीठ पर लादे हुए भाग रहा है ताकि वो खुद के अलावा उसकी भी जान बचा सके। अगर आप भी इस तरफ की ऑफ बीट और फिल्म फेस्टिवल टाइप फिल्में देखना पसंद करते हैं तो यह फिल्म आपके लिए है।
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