कृषि कानून का पंजाब-हरियाणा में विरोध हुआ बुलंद। Syed Dabeer Hussain - RE
व्यापार

इन पांच कारकों से समझें नये कृषि कानून का बाजार और किसानों पर प्रभाव

"खरीफ की फसल का मौसम नई व्यवस्था को परखने के लिए अहम होगा। अगर फसल की कीमतें प्रभावित हुईं तो पंजाब और हरियाणा में अशांति फैल सकती है।"

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स –

  • कृषि कानून की अग्नि परीक्षा बाकी

  • खरीफ मौसम में होगी असल परीक्षा

  • पंजाब-हरियाणा में विरोध हुआ बुलंद

  • कार्यप्रणाली की सतत निगरानी जरूरी

राज एक्सप्रेस। नरेंद्र मोदी सरकार नया कृषि कानून भारत के व्यापक और खंडित कृषि बाजार को संशोधनों के साथ बदलाव के नजरिये से लाने की बात कह रही है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के लिहाज से ये कानून महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन बताया जा रहा है।

पंजाब-हरियाणा ने ध्यान खींचा -

अब तक किए गए किसानों के विरोध प्रदर्शनों ने उत्तर-पश्चिमी भारत के पंजाब और हरियाणा में बड़े पैमाने पर ध्यान आकृष्ट किया है। नये कानून से राज्यों में अगले कुछ वर्षों में दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है।

सरकार को उम्मीद -

इन कृषि कानून से सरकार को उम्मीद है कि खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिस्पर्धी बाजारों और उच्च निजी निवेश से कृषि उपज की कीमतों में सुधार होगा।

इन अहम संकेतकों से समझें -

केंद्र सरकार के लागू सुधारों को इन अहम संकेतकों से समझा जा सकता है।

पहला - अव्वल तो अगले कुछ हफ्तों में खरीफ की ताजा कटाई वाली फसलें बाजारों में पहुंचने लगेंगी। इससे यह परखने में आसानी होगी कि मौजूदा मंडियों में गिरावट किस सीमा तक है।

उदाहरण के लिए, अगर कृषि उत्पाद की आवक में पिछले अक्टूबर (आवक के चरम महीने) की तुलना में 25% से अधिक गिरावट होती है, तो इसका मतलब यह निकलेगा कि व्यापार नई शासन प्रणाली के शून्य करों और फीस प्रावधान का लाभ उठाने के लिए एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) यानी कृषि उपज मंडी (कृउम) समिति की पहुंच से छिटक रहा है।

हालांकि नियामक निगरानी और एपीएमसी की मंडियों के बाहर लेनदेन की निगरानी के बिना यह स्पष्ट नहीं है कि किसानों पर कल्याणकारी प्रभाव कितनी निर्धारित मात्रा में और कैसे पड़ेगा। लेकिन यदि सालाना आधार पर कोई परिवर्तन नहीं दिखता है तो इसका मतलब होगा कि अभी के लिए यथास्थिति है।

दूसरा - दूसरी बात फार्म गेट की कीमतों पर तत्काल प्रभाव को समझने के लिए थोक मूल्यों के आंकड़ों पर बारीकी से नज़र रखी जानी चाहिए।

चूंकि फसल उत्पादन में पर्याप्त बारिश और उच्च रोपण के बाद रिकॉर्ड ऊंचाई को छूने की उम्मीद है, तो ऐसे में थोक मूल्यों में फिसलन के कारण किसान अशांत हो सकते हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आश्वासन दिया है कि किसानों को मिनिमम सपोर्ट प्राइज यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद से वंचित नहीं किया जाएगा।

यह संभावना है कि कीमतें गिरने पर राज्य की खरीद अगर दलहन और तिलहन तक सीमित रहती है तो किसान सरकार को जवाबदेह ठहराएंगे।

तीसरा - तीसरा संकेतक यह है कि खासकर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में खाद्यान्न की सरकारी खरीद कैसे बदलेगी?

क्या भारतीय खाद्य निगम (FCI-भाखनि) कमीशन एजेंटों की सेवाओं का उपयोग करते हुए 8% से अधिक करों का भुगतान कर मंडियों से खाद्यान्न खरीदेगा? या फिर सरकार एमएसपी संचालन करते समय बाहरी मंडियों से खरीद करेगी?

सामान्य खरीद शासन प्रणाली में कोई व्यवधान इन राज्यों में अशांति का कारक बन सकता है। इससे देश के अन्य राज्यों में भी नए कृषि कानून पर विरोध प्रबल हो सकता है।

चौथा - चौथी अहम बात यह है कि नीति निर्माताओं और केंद्रीय बैंक को इस बात की बारीकी से निगरानी करने की आवश्यकता हो सकती है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में किया जा रहा बदलाव खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति को कैसे प्रभावित करेगा?

बाजार के जानकारों के अनुसार सरकार ने निजी खिलाड़ियों को स्वतंत्र रूप से कृषि पैदावार का स्टॉक करने की अनुमति दी है। ऐसे में जमाखोरी कर खुदरा कीमतों में हेरफेर की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

सरकार को निजी तौर पर रखे गए स्टॉक को बारीकी से ट्रैक करने की जरूरत है। ऐसा न करने पर रिकॉर्ड खाद्य उपज कटाई के बावजूद उच्च खाद्य मुद्रास्फीति की वर्तमान प्रवृत्ति कम नहीं हो सकती है।

व्यापार नीति निर्णयों के लिए निजी रूप से रखे गए भंडारों पर पारदर्शी शासन की भी आवश्यकता है।

पांचवा - नई प्रणाली की अंतिम खास बात यह है कि किसान समूहों को कृषि बाजारों में कॉरपोरेट हस्तक्षेप की बारीकी से निगरानी करने की भी जरूरत पड़ेगी।

अगर राज्य सरकारें सुधार के एजेंडे में शामिल नहीं हैं तो यह संभावना नहीं है कि निजी फर्म मूल्य श्रृंखलाओं या निजी बाजारों की स्थापना में त्वरित निवेश करेंगी। राजनीतिक रूप से अस्थिर स्थिति भी निजी फर्मों को निवेश करने से रोक देगी।

यहां यह भी एक अहम मामला हो सकता है कि खाद्य कंपनियां किसानों से सीधे खरीद करने के लिए बहु-बिचौलियों की सेवाओं ले सकती हैं। ऐसे में साफ है कि किसानों को ऐसे लेनदेन में लाभ होने की संभावना नहीं है।

"खरीफ की फसल का मौसम नई व्यवस्था को परखने के लिए अहम होगा। अगर फसल की कीमतें प्रभावित हुईं तो पंजाब और हरियाणा में अशांति फैल सकती है।"

डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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