भारतीय स्टार्टअप्स में चीनी कंपनियों ने कितना किया निवेश? Syed Dabeer Hussain - RE
व्यापार

क्यों सुहाता है भारत चाइनीज इन्वेस्टर्स को?

बिजली/मशीनरी/धातु और परिवहन में चीनी कंपनियों का हिस्सा है। ऐसे में भारत को समयकालिक बदलावों पर सतर्क रहना होगा! खास श्रृंखला में जानिये भारतीय स्टार्टअप्स में चाइनीज अलीबाबा/टेनसेंट का कितना है दखल..

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स

  • अलीबाबा/टेनसेंट का बढ़ता प्रभाव

  • भारतीय स्टार्टअप्स में किया निवेश

  • अलीबाबा/टेनसेंट के निवेश पर नजर

राज एक्सप्रेस। चाइना ने भारत के जिन सेक्टर्स में निवेश किया है वो किसी भी अर्थव्यवस्था की धुरी कहे जा सकते हैं। बिजली, मशीनरी, धातु से लेकर परिवहन तक में चाइनीज कंपनियों की भारत में हिस्सेदारी है। ऐसे में भारत को समयकालिक बदलावों को लेकर काफी सतर्क रहना होगा!

B2B मौजूदगी -

अपेक्षाकृत अज्ञात गैर-लाभकारी संगठन चिंडिया चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (CCCI) संगठन के सदस्यों की सूची भी बहुत दिलचस्प है। वर्ष 2012 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत स्थापित इस संगठन (CCCI ) में जनवरी 2013 तक सैकड़ा से भी अधिक चीनी कंपनियां सदस्य बताई गई हैं।

CCCI की 101 सदस्य कंपनियां में से -

  • 24 इलेक्ट्रिक, ट्रांसमिशन, पावर और पावर-कंस्ट्रक्शन कंपनियां हैं।

  • 5 मशीनरी कंपनियां हैं।

  • 4 स्टील और मेटल कंपनियां हैं।

  • 3 निर्माण (आवासीय, वाणिज्यिक, बुनियादी ढांचे, आदि) कंपनियां हैं।

कई अन्य प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और सेवा फर्म हैं। वास्तव में लेनेवो, श्याओमी, टिकटोक, विगो, यूसी न्यूज़, न्यूज़ डॉग, क्लब फैक्ट्री, यूसी ब्राउज़र जैसे लोकप्रिय ब्रांड्स इस अभिजात वर्ग के आधिकारिक उद्योग संघ का एक छोटा सा हिस्सा मात्र हैं। यह संघ भारत में निर्यात की प्रकृति और परिमाण का प्रतिबिंब है।

संगठन (CCCI ) के पते ठिकानों पर इस बात का उल्लेख नहीं हैं कि वर्तमान में चाइनीज सदस्य कंपनियों का आंकड़ा कितना है? फिलहाल यह चिंता का विषय भी है क्योंकि वर्तमान में भारत का चाइना से 36 का आंकड़ा चल रहा है।

इनका कहना -

द मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राइसवाटरहाउसकूपर्स इंडिया के पॉवर और यूटिलिटीज में साझेदार संबितोष महापात्रा का कहना है, "यह देखते हुए कि 60 प्रतिशत से अधिक तनावग्रस्त संपत्ति चीनी मूल की हैं, ऐसे में जोखिम की समीक्षा और यथोचित (विशेष रूप से तकनीकी) परिश्रम, मशीनों का प्रदर्शन, वारंटी, पुर्जों की आपूर्ति, ओ एंड एम (संचालन और रखरखाव) समर्थन आदि चाइना के साथ भू-राजनीतिक बदलाव की स्थिति में प्रभावित होगा।“

मोबाइल में भी प्रभुत्व -

मोबाइल फोन उद्योग में भी हमें इसी तरह का एक-छत्रवादी प्रभुत्व देखने मिलता है। साल 2011 में फॉर्च्यून इंडिया के एक लेख में दावा किया गया था कि भारतीय बिजली परियोजनाओं के लिए 2010 के अंत तक पहले ही लगभग 1 लाख करोड़ रुपये के बिजली के उपकरण आयात कर लिए गए थे।

इसका कारण यह था कि चीनी कंपनियों ने वास्तव में अच्छा प्रदर्शन किया। हालांकि इसका एक अन्य कारण चीन के EXIM बैंक की कम ब्याज दर भी हो सकती है। कुछ प्रमुख नामों में सेप्को, डोंगफैंग, हार्बिन और शंघाई इलेक्ट्रिक शामिल हैं।

सिर्फ पॉवर ही नहीं -

गौर करने वाली बात है सिर्फ पॉवर कंपनियों में ही नहीं बल्कि चीनी कंपनियां दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, नागपुर और कोलकाता मेट्रो परियोजनाओं में भी शामिल रहीं।

वर्चस्व पर लगाम -

यदि सेक्टर्स में सुरक्षा संबंधी चिंता का विषय नहीं हो तो चीनी कंपनियों का वर्चस्व बहुत अधिक हो सकता है। हालांकि भारत सरकार चीनी माल के आयात को लक्षित कर ड्यूटी को सक्रिय तौर पर बढ़ा रही है।

गौरतलब है साल 2015 में, भारत सरकार ने चीनी उत्पादों के डंपिंग को लक्षित किया और स्टील आयात पर शुल्क लगाया। इसके अलावा 2017 में सरकार ने सुरक्षा चिंताओं पर दूरसंचार और विद्युत उपकरणों के आयात पर नियम कड़े कर दिए।

भारतीय स्टार्टअप्स में चाइनीज निवेश -

चाइनीज उद्यम और प्रत्यक्ष निवेश के मामले में बड़े नामी ब्रांड्स से इतर भारत में चाइना की मौजूदगी वेंचर कैपिटल (VC) और प्रौद्योगिकी कंपनियों में खास है। चीनी कंपनियों ने भारत के कुछ प्रसिद्ध स्टार्टअप्स में निवेश किया है।

अलीबाबा और टेनसेंट -

इसकी शुरुआत पेटीएम में अलीबाबा और प्रेक्टो में टेनसेंट के विनियोग से हुई। अलीबाबा ने स्नैपडील (Snapdeal), जोमैटो (Zomato), बिगबास्केट (BigBasket) और फर्स्ट क्राय (First Cry) में भी पैसा लगाया है।

इसी तरह टेनसेंट के स्विगी (Swiggy), ओला (Ola) और फ्लिपकार्ट (Flipkart) में शेयर हैं। श्याओमी ने हंगामा में इन्वेस्ट किया है।

भारत में इतनी रुचि -

एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में चाइनीज कंपनियों ने भारत के तकरीबन 30 स्टार्टअप्स में लगभग 5.2 बिलियन डॉलर* निवेश किया। साल 2016 के मुकाबले यह आंकड़े पांच गुना अधिक कहे जा सकते हैं। गौरतलब है चाइनीज कंपनियों ने 2016 में 41 भारतीय फर्मों में तकरीबन 930 मिलियन डॉलर* का निवेश किया था। (*अंक-समंक इंटरनेट सोर्स पर आधारित)

दरअसल जब से भारत में स्टार्टअप युग की शुरुआत हुई है तब से विदेशी निवेश और निवेशक भारत में पैर पसारकर पैठ जमा रहा है। अधिक से अधिक कंपनियां भारतीय ग्राहकों की सेवा में अभिनव विचारों के साथ भारत आ रही हैं।

हमने कुछ उद्यमियों और प्रभावितों से बात की, जिनके पास भारत में वेंचर कैपिटल (VC) यानी वित्तीय पूंजी और उद्यमशीलता पारिस्थितिकी तंत्र की अच्छी समझ है। जानिये भारत में चीनी निवेशकों के बारे में उनका क्या कहना है? -

जिज्ञासु भाव-

चीनी निवेशक भारतीय उपभोक्ताओं को लेकर बहुत उत्सुक हैं। वे अपने व्यवहार, आदतों, पसंद और नापसंद के बारे में बहुत सारे सवाल पूछते हैं।

दूसरी ओर, अधिकांश भारतीय उद्यमियों को जब इसी तरह के सवालों का सामना करना पड़ता है तो उनके पास अच्छे उत्तर नहीं होते। प्रतिक्रिया भी सामान्य दर्जे की रहती है। साथ ही बजाए खुद शोध करने के कई कंपनियां यूएस-आधारित स्रोतों से प्राप्त स्टडी का सहारा लेना उचित समझती हैं।

पहुंच गांव खेड़े तक -

भारतीय/अमेरिकी वेंचर कैपिटल्स और कुछ भारतीय उद्यमी, बड़े शहरों के बाहर उपभोक्ताओं के बारे में गहरी समझ या रुझान प्रदर्शित नहीं करते।

दूसरी ओर, चीनी निवेशक जमीन से जुड़े हैं। उन्होंने छोटे नगरों और शहरों में खुद को गहराई से स्थापित किया है। चाइनीज इन्वेस्टर्स को भारतीय उपभोक्ता और बाजारों की असलियत की बेहतर तरीके से समझ है।

आम भारतीय और भारत के बाजार को समझने की चाइनीज कंपनियों की इसी कुशलता ने आज उन्हें समाचार, मनोरंजन, इंटरनेट ब्राउज़र सरीखी कई श्रेणियों का सिरमौर बना दिया है।

मौके को भुनाने का गुण -

चीनी कंपनियों के उपभोक्ताओं में गांवों, कस्बों, इलाकों, छोटे शहरों का वह एक बड़ा वर्ग भी शामिल है जिनको अब तक कथित बिग ब्रांड्स कमतर आंक रहे थे।

भला लगे या बुरा लेकिन यह साफ है कि चीनी निवेशकों के खुद के कान और खुद के पैर हैं। उपभोक्ताओं और बाजार की रुचि के अनुकूल खुद को ढालने से लेकर उसके लिए कठिन परिश्रम के लिए तक चीनी कंपनियां तत्पर हैं।

सिंगापुर के रास्ते निवेश -

सिंगापुर और मॉरीशस के माध्यम से भारत की निवेश के प्रति लचीलेपन की नीति के कारण किसी एक देश से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का अनुमान लगाना जरा मुश्किल हो जाता है। कई चीनी कंपनियां वास्तव में सिंगापुर के रास्ते भारत में निवेश करती हैं।

फिर भी सरकारी आंकड़े गवाह हैं कि अप्रैल 2000 और जून 2014 के बीच, भारत को लगभग 410 मिलियन डॉलर का चीनी एफडीआई प्राप्त हुआ था।

पांच गुना वृद्धि -

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत को इस सदी के पहले 14 वर्षों के मुकाबले वर्ष 2018 की पहली छमाही में पांच गुना एफडीआई मिला। यह एक उल्लेखनीय आंकड़ा है और जो मोटे तौर पर भारत में चीनी आर्थिक भागीदारी में हुई अचानक वृद्धि पर प्रकाश डालता है।

हालांकि जैसी हम चर्चा कर चुके हैं चीनी वैश्विक एफडीआई में भारत की हिस्सेदारी बहुत कम है। जो आगामी संभावित आशंकाओं (और सुरक्षा मुद्दों) के समाधान का संकेत भी है। अलीबाबा और चालीसों चीनी कंपनियां भारत में दिन-ब-दिन अपनी जड़ें मजबूत कर रही हैं। भारत को भी तकनीक से लेकर बाजार पहुंच को मजबूत करने निर्माण इकाइयों को मजबूत बनाना होगा।

चालाक चीन ने दूसरे एशियाई देशों के मुकाबले भारत में खुद को स्थापित करने क्या खास रणनीति बनाई है? उसकी यह रणनीति इंडियन मार्केट में कितनी सफल है?" इस बारे में जानिये खास श्रंखला के आर्टिकल “क्या है भारत में सफल चाइनीज रणनीति का राज?” में।

डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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