एफपीआई निवेशक कम समय में ज्यादा रिटर्न कमाने के लिए करते हैं निवेश, वे बहुत कम समय के लगाते हैं अपना रुपया
एफआईआई निवेशक लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं, एफआईआई बाजारों में ज्यादा समय तक एक्टिव रहते हैं।
राज एक्सप्रेस । विदेशी निवेश में फारेन पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) और विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) दोनों ही अहम भूमिका निभाते हैं। जब भी विदेशी निवेश की बात की जाती है तो एफपीआई और एफआईआई की बात जरूर होती है। निवेश के बारे में कम जानने वाले कई लोग दोनों को एक ही समझ लेते हैं, हालांकि ऐसा नहीं है। इन दोनों के बीच बड़ा अंतर होता है। आइए पता करते हैं कि दोनों के बीच क्या अंतर है। शेयर मार्केट की खबरों में आप अक्सर पढ़ते या सुनते होंगे कि कल बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों या विदेशी संस्थागत निवेशकों ने बाजार में जमकर खरीदारी की, जिससे बाजार ऊपर चला गया या इन्होंने जबर्दस्त बिक्री की जिसने शेयर बाजार में गिरावट का नेतृत्व किया। इनकी शेयर बाजार में बड़ी भूमिका होती है।
एफपीआई का पूरा नाम विदेशी पोर्टफोलियो निवेश होता है और जो यह निवेश करता है उसे विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक कहा जाता है। किसी विदेशी राष्ट्र की वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश, जैसे किसी स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड शेयर या बॉन्ड में पैसे लगाने को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के रूप में जाना जाता है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेश मतलब, विदेशी व्यक्तियों, संस्थागत निवेशकों या फंड द्वारा वित्तीय उपकरणों में किया गया निवेश। इन उपकरणों में स्टॉक, बॉन्ड, म्यूचुअल फंड, सरकारी प्रतिभूतियां और अन्य शामिल होते हैं।
एफपीआई निवेशक कम समय में ज्यादा रिटर्न कमाने के लिए निवेश करते हैं इसलिए इन निवेशकों का मैच्योरिटी पीरियड कम होता है। एफआईआई का पूरा नाम विदेशी संस्थागत निवेशक है। एफपीआई का ही एक उप वर्ग है। एफआईआई म्यूचुअल फंड, पेंशन फंड, बीमा कंपनियों और हेज फंड में निवेश करते हैं, स्टॉक में नहीं। इसके अलावा संस्थागत निवेशक या एफआईआई, निवेश के लिए कई स्रोतों से पैसा एकत्र करते हैं। व्यक्तिगत एफपीआई निवेशकों की तुलना में एफआईआई बाजारों में ज्यादा एक्टिव रहते हैं।
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