हाइलाइट्स –
ड्रैगन को जापान का झटका
थाईलैंड के बाद अब जापान तैयार
आसियान देशों में निवेश की तैयारी
ताइवानी नीति की तरह जापानी कदम
राज एक्सप्रेस। कोरोना वायरस महामारी और व्यापारिक रणनीतियों के कारण वैश्विक गतिरोध का सामना कर रहे चीन को जापान ने भी झटका दिया है। अब चीन छोड़ने वाली जापानी कंपनियों को जापान की सरकार ने सब्सिडी देने का फैसला किया है।
यह है प्लान –
दरअसल जापान ने चीन से मोहभंग के कारण वापसी करने वाली देश (Japan) की कंपनियों के लिए खास रणनीति बनाई है। जापानी सरकार ने चीन छोड़कर अन्य एशियाई देशों में मैन्युफैक्चरिंग (विनिर्माण) यूनिट लगाने की इच्छुक कंपनियों को सब्सिडी देने का फैसला किया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक जापान सरकार ने इस उद्देश्य के लिए 1,615 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
जापानी स्ट्राइक -
भारत ने चीन से भिड़ने भौगोलिक सीमा से लेकर आर्थिक मामलों में पहले से ही मोर्चा संभाल रखा है। अब जापान ने भी इकोनॉमिक स्ट्राइक की तैयारी कर डाली है।
इसी कड़ी में जापान ने चीन में काम कर रहीं जापानी कंपनियों के चाइना छोड़कर अन्य एशियाई देशों में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाने की इच्छुक जापानी कंपनियों को सरकारी वित्तीय मदद देने का फैसला किया है।
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वजह निर्भरता -
दरअसल जापान आपूर्ति श्रृंखला एवं कच्चे मटेरियल के मामले में चीन पर अपनी अति निर्भरता में कमी लाने का इच्छुक हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जापान ने बजाय चीन के अब आसियान देशों में काम करने का मन बनाया है।
भरोसा भारत का –
भारत के अभिन्न मित्र जापान ने चीन के बजाए अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए आसियान मित्र देशों के साथ ही भारत और बांग्लादेश को भी अपनी सूची में वरीयता प्रदान की है। सूची में उन देशों का उल्लेख है जहां जापानी कंपनियां निवेश कर अपने उत्पाद निर्मित कर सकती हैं।
आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना है कि जापानी कंपनियों के भारत में विस्तार से निश्चित ही न केवल आर्थिक संबंध मजबूत होंगे बल्कि एक नए युग का भी उदय होगा। इस फैसले से दोनों देशों को आर्थिक लाभ तो होगा ही सामरिक संबंध भी मजबूत होंगे।
METI ने दी जानकारी -
जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय (METI) ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी दी। इसके अनुसार वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में निवेश के लिए 30 और फर्मों को भी एक अलग घोषणा के अनुसार धन प्राप्त होगा। हालांकि इस घोषणा में इन फर्मों को मिलने वाले धन का विवरण प्रदान नहीं किया गया।
METI ने आसियान देशों में काम करने का मानस बनाने वाली कंपनियों को सब्सिडी देने का भरोसा दिया है। भारत और बांग्लादेश में निर्माण इकाइयां लगाने वाली कंपनियों को भी जापान सरकार ने मदद करने की बात कही है।
इतना फंड आवंटित –
चाइना छोड़ने वाली कंपनियों की मदद के लिए जापान सरकार ने बतौर सब्सिडी देश के साल 2020 के पूरक बजट में 221 मिलियन डॉलर (1,615 करोड़ रुपये) आवंटित किए हैं।
ऐसे में जो कंपनियां चीन छोड़कर भारत और आसियान देशों में कामकाज का विस्तार करेंगी उनको सरकारी मदद मिलेगी। जापान ने सब्सिडी के रास्ते चीन पर जापान की निर्भरता को कम करने की योजना बनाई है।
आगाज 3 सितंबर से -
जापान का लक्ष्य कई देशों में जापानी कंपनियों की विनिर्माण इकाइयों की स्थापना करने का है। ऐसा इसलिए ताकि किसी संकट की स्थिति में देश में दवा और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। साथ ही किसी एक देश पर से अति निर्भरता कम हो।
जापान की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने इस मदद की इच्छुक कंपनियों के लिए आवेदन करने की तारीख 3 सितंबर तय की है।
भारत, थाइलैंड और अब जापान -
सीमा पर तनाव के बाद से भारत ने चीन के एक सैकड़ा से ज्यादा ऐप को भारत में प्रतिबंधित कर दिया है। इस डिजिटल स्ट्राइक से चाइना बौखलाया हुआ है। सीमा पर भी उसकी हालत भारतीय सेना के कारण खराब है।
गौरतलब है कि इसके पहले थाईलैंड ने चीन संग पनडुब्बी सौदे को निलंबित किया था। मतलब भारत, थाईलैंड के बाद अब जापानी नीति से ड्रैगन को चौतरफा आर्थिक चोट पहुंचेगी।
पड़ोसी देशों भारत, थाइलैंड के अलावा अमेरिका से सामरिक रिश्तों में तनाव के कारण दुनियाभर में चीन की साख को बट्टा लगा है।
दक्षिण-पूर्व एशिया -
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार जापान सरकार चीन में विनिर्माण पर निर्भरता को कम करने के प्रयासों के तहत जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया के कारखानों में निवेश करने कुछ कंपनियों को सब्सिडी देगी।
75 कंपनियां -
फेसमास्क-निर्माता आईरिस ओहमा इनकॉरपोरेटेड या शार्प कॉर्प सहित 75 कंपनियां जापान में उत्पादन, अर्थव्यवस्था और व्यापार मंत्रालय में निवेश के लिए सरकार से सब्सिडी में कुल 57.4 बिलियन येन (536 मिलियन डॉलर) प्राप्त करेंगी।
वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड और अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में निवेश के लिए 30 फर्मों को एक और अलग घोषणा के अनुसार धन प्राप्त होगा। हालांकि इसके लिए कुल कितना धन लगेगा इसका विवरण प्रदान नहीं किया गया है।
धन का उल्लेख नहीं -
METI के बयान में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया है कि चीन से उत्पादन को स्थानांतरित करने के लिए कितना पैसा लगेगा।
पीएम आबे ने कहा था -
प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने मार्च में कहा था कि जापान को उत्पादन वापस लाने की जरूरत है या इसमें विविधता लाने के लिए आसियान देशों में इसके विस्तार की आवश्यकता है। ऐसा इसलिए ताकि किसी भी एक देश पर निर्भरता में कटौती की जा सके।
निक्केई की रिपोर्ट -
अखबार निक्केई की रिपोर्ट के अनुसार जापान सरकार इस कार्यक्रम में कुल 70 बिलियन येन का भुगतान करेगी। सरकार ने अप्रैल महीने में चीनी आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता को कम करने के लिए रणनीति पर काम शुरू किया था।
इसका उद्देश्य कंपनियों की घर वापसी या अन्य देशों में शिफ्ट करने में जापानी कंपनियों की मदद करना था।
ताइवानी नीति -
जापान का हालिया निर्णय साल 2019 की उस ताइवानी नीति की ही तरह है, जिसका उद्देश्य चीन से निवेश घर वापस लाना था। अब तक, किसी अन्य देश ने इस मामले में कोई ठोस नीति नहीं बनाई है।
सबसे बड़ा भागीदार -
सामान्य परिस्थितियों में चीन पड़ोसी जापान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। जापानी कंपनियों का चीन में बड़े पैमाने पर निवेश भी है। कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप ने दोनों देशों के आर्थिक संबंधों के साथ-साथ जापान में चीन की छवि को भी नुकसान पहुंचाया है।
जापान की कोशिश -
साल 2012 में जापान विरोधी दंगों के बाद से प्रधान मंत्री शिंजो आबे की सरकार चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए भरसक कोशिश कर रही है।
लेकिन महामारी और पूर्वी चीन सागर के द्वीपों और गैस क्षेत्रों पर चल रहे क्षेत्रीय विवाद के नतीजों ने जापान के प्रयासों को कम कर दिया है।
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डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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