राज एक्सप्रेस। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आईडीआरसी द्वारा आयोजित ‘आर्बिट्रेट इन इंडिया कॉन्क्लेव-2023’ को संबोधित करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जज जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि दुनिया की तेजी से उभर रही भारतीय अर्थव्यवस्था में पैदा होने वाले वाणिज्यिक-व्यावसायिक विवादों के शीघ्र निपटारे के लिए एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। ऐसे विवादों की समयबद्ध निपटान प्रक्रिया का विकास आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है। इस पर देश का विकास निर्भर करेगा। यह बात न्यायमूर्ति शाह ने इंडियन डिस्प्यूट रिज्योलूशन सेंटर (आईडीआरसी) द्वारा राजधानी में आयोजित दूसरे ‘आर्बिट्रेट इन इंडिया कॉन्क्लेव-2023’ को संबोधित करते हुए दी।
उन्होंने कहा आईडीआरसी एक संस्थागत मध्यस्थता केंद्र है। यह ऑनलाइन, ऑफलाइन मध्यस्थता की सुविधा प्रदान करता है। लेकिन भारत को मध्यस्थता (ऑब्रिट्रेशन) का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बनाने के लिए हमें अपने आपको तैयार करना पड़ेगा। एक बेहतरीन पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) बनाना पड़ेगा और देश में इस विषय को विस्तृत रूप से गहराई के साथ समझना पड़ेगा। इस कार्यक्रम में विषय को लेकर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। जिसमें भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, सर्वोच्च न्यायालय की रिटायर्ड जज इंदु मल्होत्रा, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा, सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रतनके सिंह, तेजस कारिया (हेड ऑब्रिट्रेशन, शार्दुल अमरचंद मंगलदास) मौजूद रहे। इस परिचर्चा का संचालन दिल्ली हाईकोर्ट में अधिवक्ता शशांक गर्ग ने किया।
न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि बीते एक दशक से इस मामले को लेकर चर्चा चल रही है। लेकिन अगर भारत को इसे लेकर वैश्विक केंद्र के रूप में उभरना है तो उसके लिए अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक केंद्र होने से लेकर एक अच्छी मध्यस्थता शासन पद्धति और विवादों के त्वरित निपटारे के संबंध में अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड होना बेहद जरूरी है। वाणिज्यिक विवादों के निपटारे में होने वाली देरी के मसले का भारत को समाधान निकालना पड़ेगा। इसके लिए प्रत्येक न्यायालय में विशेष ब्रांच स्थापित करनी पड़ेंगी। सक्षम मध्यस्थतों का एक पूरा व्यवसायिक संघ यानी पूल तैयार करना पड़ेगा। 2015 से इस दिशा में काफी काम हुआ है। लेकिन देरी का समाधान निकाला जाना जरूरी है।
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एम.आर.शाह द्वारा भारत को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता का अहम केंद्र बनाने के लिए प्रत्येक न्यायालय में विशेष बेंच स्थापित करने के सुझाव पर सहमति प्रदान की। उन्होंने कहा कि इसके लिए विशेष अदालतें और बेंच होनी चाहिए। सरकार भी इस मामले को लेकर बेहद गंभीर है और देश का परिदृश्य भी बीते कुछ सालों में काफी बदला है। लेकिन अगर वैश्विक मध्यस्थता के मामले में सिंगापुर की तरह ही भारत को भी बनाना है तो यह दुनिया के लिए एक मुख्य और तटस्थ पसंद है। जिसमें वह मध्यस्थता के लिए भारत आएं। उन्होंने जजों के प्रत्यक्ष प्रशिक्षण का जिक्र नहीं किया लेकिन कहा कि इस मामले में जजों का ओरियंटेशन काफी जरूरी है।
परिचर्चा में मौजूद बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि बीते करीब तीन दशक इस विषय को लेकर बार काउंसिल में चर्चा चल रही है। पहले वकील इसके विरोध में थे। लेकिन अब स्थिति काफी अच्छी हो गई है। काउंसिल ने मामले पर काफी स्टडी भी की है। विदेशी वकीलों और लॉ फर्मों को आकर्षित करने के लिए पारस्परिकता सबसे बड़ी चीज है। हमें कई चीजों को समझने की जरूरत है। काउंसिल नियम लेकर आई है। अगर बदलाव चाहिए तो हम करेंगे। लेकिन इसमें हमें सरकार और कानून मंत्रालय को भी शामिल करना पड़ेगा। अधिवक्ताओं के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम को लेकर उन्होंने कहा कि यह पहले से मौजूद है। लेकिन इस बाबत नियम 2023 में क्रियान्वित होंगे। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रतन.के.सिंह ने कहा कि इस मामले में हमें भरोसेमंद मध्यस्थता संस्थानों की आवश्यकता है। कार्यक्रम में मौजूद हेड ऑब्रिट्रेशन, शार्दुल अमरचंद मंगलदास के तेजस कारिया ने कहा कि इस विषय को लेकर लंदन, सिंगापुर और पेरिस से तुलना किए बगैर एक ऐसा केंद्र बनाया जाना चाहिए। जो कि काम करे।
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