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इस साल रबी सीजन में हो सकता है रिकॉर्ड 1.6 करोड़ टन मसूर का उत्पादन, बनेगा उत्पादन का नया रिकॉर्ड

कंज्यूमर्स अफेयर्स मामलों के विभाग में सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि इस बार रबी के सीजन में देश में मसूर दाल का रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावना है।

Aniruddh pratap singh

हाईलाइट्स

  • 14 से 17 फरवरी को होगा ग्लोबल पल्स कन्वेंशन के 2024 एडीशन का आयोजन

  • पिछले सालों की तुलना में इस साल अधिक बोई गई है मसूर

  • देश में नहीं होता जरूरत भर उत्पादन, विदेश से मंगानी पड़ती है मसूर-अरहर

राज एक्सप्रेस। ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) के तत्वावधान में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कंज्यूमर्स अफेयर्स मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने कहा कि इस बार रबी के सीजन में देश में मसूर दाल का रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावना है। उन्होंने कहा इस बार मसूर दाल का उत्पादन 1.6 करोड़ टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है। इस बार अधिक उत्पादन की वजह यह है कि पिछले सालों की तुलना में इस साल मसूर की बोनी अधिक की गई है। कंज्यूमर्स अफेयर्स मामलों के सचिव रोहित कुमार सिंह ने दावा किया कि इस साल मसूर उत्पादन का नया रिकार्ड बनने जा रहा है।

एक साल पहले 2022-23 के रबी सीजन में देश में 1.56 करोड़ टन मसूर का उत्पादन किया गया था। बता दें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश है। इसके बाद भी, भारत को हर साल दाल की घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए मसूर और अरहर की दाल विदेश से मंगानी पड़ती है। रोहित कुमार सिंह ने ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल, मसूर दाल का उत्पादन अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने की संभावना है। क्योंकि इस साल बुआई के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। जीपीसी ने इस दौरान ऐलान किया कि ग्लोबल पल्स कन्वेंशन के 2024 एडीशन का आयोजन आगामी 14-17 फरवरी को नई दिल्ली में आयोजित होगा। यह वैश्विक स्तर का कार्यक्रम 18 साल बाद भारतीय सहकारी संस्था भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) के सहयोग से आयोजित किया जाएगा।

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा रबी सीजन में 12 जनवरी तक मसूर का कुल रकबा बढ़कर 19.4 लाख हेक्टेयर हो गया है, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में यह रकबा 18.3 लाख हेक्टेयर था। रोहित कुमार सिंह ने बताया कि देश में सालाना औसतन 2.6 से 2.7 करोड़ टन दाल का हर साल उत्पादन होता है। चना और मूंग के उत्पादन के मामले में, देश अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया है, लेकिन अरहर और मसूर जैसी दूसरी दालों के मामले में हम अब भी आयात पर निर्भर हैं।

रोहित कुमार सिंह ने बताया कि सरकार किसानों को अधिक दाल उत्पादन के लिए प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन अनेक वजहों से जरूरत के अनुरूप दालों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। हमारे पास खेती का सीमित क्षेत्र है। किसानों को उसी भूमि पर अपनी अन्य जरूरत की फसलें भी उगानी पड़ती हैं। हालांकि, उत्पादन बढ़ाने के हाल के दिनों में किए गए प्रयासों के नतीजे अब दिखाई देने लगे हैं। मुझे लगता है कि हम पिछले कुछ सालों में ठीक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। मौसम संबंधी गड़बड़ियों के बावजूद हम दाल का उत्पादन बढ़ाकर इनकी कीमतों को काबू में रखने में एर सीमा तक रखने में कामयाब रहे हैं।

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