राज एक्सप्रेस। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा जारी की गई 2016-17 से लेकर 2021-22 तक की एनुअल रिपोर्ट्स में ऐसा कहा गया था कि, RBI द्वारा नोटबंदी के बाद 2016 से लेकर वर्तमान समय तक 500 और 2000 के कुल 6,849 करोड़ रूपये की करंसी के नोट छापे थे। जिनमे से 1,680 करोड़ से ज्यादा करंसी नोट सर्कुलेशन से गायब हैं। इसके बाद 'नोटबंदी' (Demonetisation) वाला मामला सुप्रीम कोर्ट में जारी था। इतना ही नहीं इस मामले में कोर्ट ने 'नोटबंदी' (Demonetisation) पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को नोटिस जारी किया था। वहीँ, आज इस मामले पर अंतिम फैसला सामने आ गया है, तो जानें क्या है सुप्रीम कोर्ट का कहना।
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला :
दरअसल, साल 2016 में हुई नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए इसे सही करार दिया है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले में दर्ज की गई 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस सुनवाई के दौरान सभी जजों ने अपने-अपने पॉइंट्स रखे। कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैसले पर कहा कि, 'नोटबंदी का फैसला अचानक नहीं लिया गया था यह फैसला प्री प्लान था और सरकार ने इस फैसले को लेने के बाद सभी नियमों का पालन किया है। इस फैसले की तैयारियां छह महीने पहले से चल रही थी और इस मामले में सरकार और RBI के बीच छह महीने बातचीत चली इसके बाद यह फैसला लिया गया और देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया।'
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी :
सुप्रीम कोर्ट में फैसला सुनाने से पहले इस मामले पर हुई टिप्पणी से कई बाते सामने आई है। जिन बातों से यह साफ हो जाता है कि, सरकार ने ये फैसला अचानक से नहीं लिया है। इस फैसले के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और सरकार के बीच कई सारी प्रकियाओं का पालन किया गया था। इस मामले में सरकार ने इस फैसले को सही साबित करने के लिए कोर्ट में कई दस्तावेज भी जमा किए हैं। उन छह महीनों के दौरान हुई बातचीत के बाद सामूहिक तौर पर फैसला लिया गया।आज हुई सुनवाई के बाद भी कई तरह के सवाल बाकी हैं, जिनके जवाब कोर्ट ने भी नहीं दिए हैं।
इन जजों ने की सुनवाई :
बताते चलें, नोटबंदी के खिलाफ दायर हुई 58 याचिकाओं की आज हुई सुनवाई में पांच जजों की बेंच ने अहम फैसला सुनाया। कोर्ट में इस फैसले की अध्यक्षता जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने की। सुनवाई करने वाली इस बेंच में जस्टिस नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल रहे।
कोर्ट का फैसला सुनाया ?
कोर्ट ने सरकार के नोटबंदी के फैसले पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा है कि, "साकार का फैसला कार्यकारी की आर्थिक नीति होने के कारण उलटा नहीं जा सकता है। नोटबंदी से पहले केंद्र और RBI के बीच विचार-विमर्श हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों के बीच एक समन्वय था। नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई थी। RBI के पास नोटबंदी का फैसला लेने के लिए स्वतंत्र शक्ति नहीं है। केंद्र सरकार और RBI के बीच परामर्श के बाद ही यह फैसला लिया गया।"
ऐसे सवाल जिनके जवाब अब भी नहीं है किसी के पास :
अगर सरकार ने नोटबंदी का एलान 6 महीने के विचार-विमर्श के बाद लिया तो, नोटबंदी के बाद जो अव्यवस्था हुई इसको लेकर सरकार ने कोई तैयारी क्यों नहीं की थी?
नोटबंदी के बाद जब नकदी निकासी की सीमा तय की जानी थी तो, बैंक और ATM के बाहर लंबी-लंबी लाइनें क्यों लगानी पड़ी। इससे देश में भगदड़ की स्थिति क्यों बनी। क्या सरकार ने पहले से इस बारे में कुछ नहीं सोचा था ?
500 और 1000 के पुराने नोट जब बदलने ही थे तो, सरकार ने दो हजार के नए नोट को लेकर ATM के कैश बॉक्स साइज को लेकर चर्चा नही की थी क्या ? क्योंकि, कैश बॉक्स में दो हजार नोट रखने की व्यवस्था करने में काफी लंबा समय लग गया था।
सरकार के नोटबंदी का फैसला लेने का मकसद कालाधन खत्म करना था, तो क्या अब देश में कालाधन खत्म हो गया है ? इतना ही नहीं नकली नोटों के कारोबार को लेकर भी सवालों के उत्तर अब तक किसी के पास नहीं हैं।
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