अंतरिक्ष सेक्टर में अगले सालों में अच्छी-खासी ग्रोथ देखने को मिल सकती है। अंतरिक्ष सेक्टर के विकास से देश की सुरक्षा को भी बल मिलेगा
हाल के दिनों में पूरी दुनिया में स्पेस इंडस्ट्री पर काफी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। भारत की अंतरिक्ष पर आधारित अर्थव्यवस्था तेज गति से आगे बढ़ रही है
2010 में दुनिया की स्पेस इकोनॉमी 277 अरब डॉलर थी, जो 2022 में बढ़कर 546 अरब डॉलर हो गई। इसमें भारत का हिस्सा केवल 2 प्रतिशत के आसपास है
राज एक्सप्रेस। अंतरिक्ष सेक्टर में अगले सालों में अच्छी-खासी ग्रोथ देखने को मिल सकती है। अंतरिक्ष सेक्टर के विकास से देश की सुरक्षा को भी बल मिलेगा। इसके साथ ही अन्य क्षेत्रों को भी मजबूती मिलेगी। हाल के दिनों में पूरी दुनिया में स्पेस इंडस्ट्री पर काफी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। भारत की अंतरिक्ष पर आधारित अर्थव्यवस्था तेज गति से आगे बढ़ रही है। 2010 में दुनिया की स्पेस इकोनॉमी 277 अरब डॉलर थी, जो 2022 आते-आते बढ़कर 546 अरब डॉलर हो गई है। फिलवक्त इसमें भारत का हिस्सा केवल दो प्रतिशत के आसपास है। माना जा रहा है कि इस दशक के अंत तक भारत का हिस्सा बढ़कर नौ से दस प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। भारतीय स्पेस कंपनियां उन्नत तकनीक और वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं। अगर ये बाधाएं न हों तो यह सेक्टर पूरी क्षमता के साथ विस्तार कर सकता है।
भारत की स्पेस इकॉनमी 2010 में यह 277 अरब डॉलर थी, जो 2022 में बढ़कर 546 अरब डॉलर हो गई है। माना जा रहा है कि 2033 तक 11 अरब डॉलर के निर्यात के साथ भारत 8% वैश्विक बाजार हिस्सेदारी हासिल कर सकता है। यह लक्ष्य हासिल करने के के लिए निजी क्षेत्र के साथ बड़े दांव लगाना चाहिए। भारत की स्पेस इकॉनमी लगातार बढ़ रही है। स्पेस इकॉनमी में भारत का हिस्सा दशक के अंत तक 10 फीसदी तक हो जाने का अनुमान है। निजी क्षेत्र की स्पेस कंपनियों के सामने टेक्नोलॉजी और संसाधनों की कमी के के साथ फंडिंग की कमी जैसी चुनौतियां भी हैं। इस सेक्टर का पूरा फायदा लेने के लिए इन चुनौतियों से निपटना जरूरी है। स्पेस सेक्टर देश की सुरक्षा को तो मजबूत करेगा ही, इसमें कृषि समेत पूरी अर्थव्यवस्था और चिकित्सा क्षेत्र को भी मजबूती देने की क्षमता है।
विशेषज्ञों के अनुसार भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में इस समय के 8.4 अरब डॉलर से बढ़कर अगले दशक में 44 अरब डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है। देश की स्पेस इकॉनमी में कैसे बढ़ोतरी की जाए इसपर अंतरिक्ष विभाग की ओर से पिछले दिनों एक परिपत्र जारी किया गया था। इसमें कहा गया है कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी के साथ भारत 2033 तक 11 अरब डॉलर के निर्यात के साथ 8 फीसदी वैश्विक बाजार हिस्सेदारी हासिल कर सकता है। आईएन-एसपीएसी-ई के अध्यक्ष पवन गोयनका के अनुसार 44 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के लिए एक सक्षम नीति वातावरण और निजी क्षेत्र के बड़े दांव की जरूरत होगी।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए इसरो ने विशेषज्ञता के साथ निजी क्षेत्र को संभालना शुरू कर दिया है। अब हमें अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़े दांव लगाने के लिए स्टार्टअप की जरूरत है, पुरानी कंपनियों को केवल इसरो के लिए आपूर्तिकर्ता बनने से आगे बढ़ते हुए प्रौद्योगिकी और प्रणालियों पर काम करना होगा। इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता ने निजी क्षेत्र के लिए रास्ते खोल दिए हैं। उन्होंने कहा नई नीति निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष क्षेत्र में किसी भी प्रौद्योगिकी में निवेश करने से नहीं रोकती है। चंद्रमा पर और अधिक मिशन शुरू किए जा सकते हैं। इसके साथ ही चंद्रमा के अलावा अन्य ग्रहों पर भी मानव भेजने की भी परियोजनाओं की शुरुआत की जा सकती है। उन्होंने कहा कि हम शुक्र, मंगल और अन्य ग्रहों पर मिशन के विस्तार पर विचार कर रहे हैं।
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