राज एक्सप्रेस। ओला में पिछले कुछ समय से सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। हाल के दिनों में, ओला के कई सीनियर कर्मचारियों ने, अचानक कंपनी से नाता तोड़ लिया है। कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने से पैदा हुई परेशानियों पर बातचीत करते हुए ओला के मुख्य कार्यकारी (सीईओ) भाविश अग्रवाल ने कहा कि ओला इंपैक्ट बेस्ड कल्चर वाली कंपनी है और यह कभी 9-5 वर्क कल्चर वाली कंपनी नहीं बनेगी। सीनियर लेवल के एंप्लॉयीज के कंपनी छोड़ने को लेकर उनका कहना है कि जैसे-जैसे कंपनी विस्तार कर रही है, कुछ लोगों को पहले और अब की स्थिति में कुछ अनुभव बदले हुए लग रहे हैं। भाविश अग्रवाल ने कहा कि बड़े स्तर पर लोगों के कंपनी छोड़ने से कंपनी ने भी सीखा है कि किस प्रकार के लोग कंपनी के लिए बेहतर काम कर सकते हैं।
पिछले साल मई में ओला कार्स के सीईओ अरुण सरदेशमुख ने अपनी नियुक्ति के एक साल से भी कम समय में ही अचानक कंपनी से नाता तोड़ने का निर्णय ले लिया था। इसके बाद जुलाई में ओला इलेक्ट्रिक के ह्यूमन रिसोर्सेज (एचआर) डायरेक्टर रंजीत कोंडेशन ने कंपनी छोड़ दी थी। उन्होंने ओला के साथ जुड़कर केवल 14 माह तक ही काम किया। इसके अलावा ओला इलेक्ट्रिक के चार्जिंग नेटवर्क्स के डायरेक्टर और बिजनेस हेड यशवंत कुमार ने इसी के आस-पास कंपनी छोड़ दी थी। कंपनी के नौकरी छोड़ रहे कर्मचारियों के नौकरी छोड़ने को लेकर जब कंपनी के पूर्व वरिष्ठ कार्यकारियों से बातचीत की गई तो सामने आया कि इन सभी लोगों ने आंतरिक स्थिति से परेशान होकर इस्तीफा दिया है।
कंपनी के वरिष्ठ कार्यकारियों से बातचीत में प्रोडक्ट क्वालिटी को लेकर ढेर सारी शिकायतें सामने आईं हैं, कारोबार शुरू करने और बंद करने के जल्दबाजी में लिए गए फैसले और पहले करो, फिर सोचो, इन वजहों ने ओला की समस्याएं बढ़ा दी हैं। ओला पिछले साल ओला इलेक्ट्रिक स्कूटर लॉन्च करने की तैयारी कर रही थी। उसी समय इसने प्री-ओन्ड डिजिटल कार बिजनेस ओला कार्स शुरू कर दिया। इसके बाद इसने क्विक कॉमर्स बिजनेस ओला डैश शुरू कर दिया। कंपनी ने इससे पहले भी 2015 में क्विक कॉमर्स बिजनेस में हाथ आजमाया था और हाइपरलोकल डिलीवरी प्लेटफॉर्म लॉन्च किया था, लेकिन अगले ही साल इसे बंद करना पड़ा था।
कर्मचारियों के कंपनी छोड़ने और कंपनी की कार्य संस्कृति के अलावा ओला के सीईओ ने सब्सिडी को लेकर भी विस्तार से बातचीत की। उनका मानना है कि एक स्तर के बाद ईवी इंडस्ट्री को सब्सिडी की जरूरत नहीं है। यह इंडस्ट्री अपने दम पर टिक सकती है। ओला में इतनी क्षमता है। उन्होंने कहा हालांकि सब्सिडी को पूरी तरह से खत्म नहीं करना चाहिए, इसे धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से हटाना चाहिए। ओला की योजना को लेकर उन्होंने कहा कंपनी की फास्टर एडॉप्शन एंड मैनुफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक वेईकल्स (फेम) सब्सिडी और पीएलआई स्कीमों के पैसों को ऑटो मैनुफैक्चरिंग और सेल कैपेसिटी में लगाने की योजना है।
उल्लेखनीय है कि फास्टर एडॉप्शन एंड मैनुफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक वेईकल्स (एफएएमई) स्कीम मार्च 2024 तक जारी रहने वाली है। इसे आगे बढ़ाने का सरकार ने अब तक कोई संकेत नहीं दिया है। हालांकि, ऑटो इंडस्ट्री बॉडीज ने इसे तीन से चार साल तक बढ़ाने का आग्रह किया है। भावेश अग्रवाल ने कहा कि ईवी ऐसा सेगमेंट है, जिसमें विकास से संबंधित बहुत सारे उपाय किए जाने जरूरी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र की ग्रोथ पहले से तय है। केंद्र सरकार इस योजना को बढ़ाने पर तभी विचार कर सकती है, जब इस वित्त वर्ष 2023-24 के आखिरी तक सरप्लस फंड बना रहे। अभी इस फंड में 5000 करोड़ रुपये हैं और अनुमान है कि इस धन का पूरा इस्तेमाल किया जा सकेगा।
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