राज एक्सप्रेस। मशहूर अमेरिकी निवेशक होवार्ड मार्क्स ने कहा है कि हालिया अमेरिकी बैंकिंग संकट और 2008 के वित्तीय संकट की तुलना करना ठीक नहीं है। पिछले माह अमेरिका में शुरू हुए बैंकिंग संकट की वजह से अमेरिका का प्रमख सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) डूब गया था। जबकि, क्रेडिट स्विस को अमेरिकी सरकार और रेगुलेटर्स की कोशिशों के बाद डूबने से बचा लिया गया। यूबीएस इसका अधिग्रहण करने को तैयार हो गया। होवार्ड मार्क्स ने इस बारे में अपने क्लाइंट्स को रिपोर्ट भेजी है। जिसमें उन्होंने कहा है कि एसवीबी के डूबने की अपनी वजहें थीं। उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी बैंकिंग इंडस्ट्री से इनका ज्यादा संबंध नहीं है। मार्क्स ओकट्री कैपिटल मैनेजमेंट के को-फाउंडर भी हैं। 76 वर्षीय मार्क्स ने लिखा, मेरा मानना है कि 2008 और 2023 के वित्तीय संकट के बीच एकमात्र समानता यह है कि दोनों का संबंध कुछ वित्तीय संस्थाओं से है।
ओकट्री कैपिटल के को-फाउंडर ने कहा कि अगर एसवीबी के डूबने की वजह को देखा जाए तो बॉन्ड खरीदने का इसका फैसला गलत साबित हुआ। यह इस बैंक के डूबने की सबसे बड़ी वजह बना। दरअसल, एसवीबी के मैनेजमेंट ने अपने करीब 50 फीसदी डिपॉजिट को 'होल्ड टिल मैच्योरिटी बॉन्ड्स' में इनवेस्ट किए थे। उन्होंने इस उम्मीद में यह इनवेस्टमेंट किया था कि आने वाले दिनों में इंटरेस्ट रेट्स में गिरावट आएगी या ये स्थिर बने रहेंगे। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ, जिससे बॉन्ड की कीमतें बहुत गिर गईं। इससे एसवीबी को बॉन्ड में अपने इनवेस्टमेंट पर बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने पूछा कि कोई कैसे यह अंदाजा लगा सकता है कि ब्याज दरें चढ़ने की जगह गिरने वाली हैं या स्थिर रहेंगी?
उन्होंने कहा अमेरिकी सरकार और फेडरल रिजर्व ने 2020 में इकोनॉमी में मुद्रा का प्रवाह बढ़ाना शुरू किया। जिसकी वजह से 2021 में इनफ्लेशन बढ़ने लगा। तब लंबी अवधि के बॉन्ड्स में निवेश का फैसला लेने की कोई वजह नहीं थी। इससे काफी रिस्क जुड़ा था, जबिक रिटर्न की गुंजाइश कम थी। एसवीबी के डूबने की दूसरी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बैंक का बिजनेस काफी कंसनट्रेटेड था। इसके पास काफी डिपाजिट था, जबकि क्रेडिट डिमांड कम थी। उन्होंने अमेरिकी बैंकिंग संकट की तुलना 2008 के वित्तीय संकट से करने के लिए सोशल मीडिया को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि 2008 में फाइनेंशियल क्राइसिस का आंच आम आदमी तक पहुंचने में कई हफ्तों का समय लगा था। इससे मैनेजमेंट और रेगुलेटर्स को क्राइसिस से निपटने के लिए काफी समय मिला था।
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