राज एक्सप्रेस। सुप्रीम कोर्ट ने रिक्यूरिटीज एपीलेट ट्रब्यूनल के फैसले को बरकरार रखते हुए आज बाजार नियामक सेबी (सेबी) को तगड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए सेबी को आदेश दिया है कि वह एनएसई को 300 करोड़ रुपये लौटाए, जो उसने सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल (एसएटी) के आदेश के तहत जमा किए थे। इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सिक्योरिटीज अपीलेट ट्रिब्यूनल के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। एसएटी ने इस साल जनवरी में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को बड़ी राहत देते हुए सेबी के अप्रैल 2019 के एक आदेश को खारिज कर दिया था। इसी आदेश को सेबी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने सेबी की याचिका पर नेशनल स्टाक एक्सचेंज को भी नोटिस जारी किया है।
यह पूरा मामला को-लोकेशन स्कैम से जुड़ा हुआ है। इस घोटाले के तहत कुछ ट्रेडर्स को एनएसई के डेटा तक अनुचित तरीके से फास्ट एक्सेस मिला और उन्होंने इसका जमकर फायदा उठाया। इसे लेकर सेबी ने 30 अप्रैल 2019 को एनएसई को आदेश दिया था कि वह अप्रैल 2014 से लेकर अब तक 12 फीसदी के सालाना ब्याज के साथ 624.89 करोड़ रुपये जमा करे। इस मामले में एनएसई को जनवरी 2023 में एसएटी से राहत मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जांच की धीमी गति और रेगुलेटरी ऑर्डर्स के लिए बाजार नियामक को तगड़ी फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि वह इतने समय से क्यों सो रहा था। उसने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। जनवरी के अंत में एसएटी की जस्टिस तरुण अग्रवाल और जस्टिस एमटी जोशी की पीठ ने भी सेबी को आड़े हाथ लिया था और जांच में विफल रहने के लिए उसे फटकार लगाई थी। बेंच के मुताबिक जब एनएसई जैसे फर्स्ट-लेवल रेगुलेटर के खिलाफ गंभीर आरोप हों, तो सेबी को ज्यादा सक्रिय होकर जांच करना चाहिए था। पीठ ने कहा कि सेबी लगातार उदासीन बनी रही, जब तक कि इससे जुड़े सवाल संसद में नहीं गूंजने लगे। जब यह मामला संसद में गूंजा तब इसकी नींद खुली और इसने जांच शुरू की। हालांकि उसकी जांच में भी कई खामियां पाई गई हैं। ट्रिब्यूनल बेंच यहीं नही की। उसने आगे कहा आरोपों की गंभीरता को देखते हुए सेबी को जांच एनएसई को सौंपने की बजाय खुद करनी चाहिए थी। बेंच ने इस पर आश्चर्य जताया कि कैसे सेबी ने एनएसई को अपने खिलाफ जांच करने का निर्देश दिया जो सीधे तौर पर लापरवाही का उदाहरण है।
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