राज एक्सप्रेस । न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सूर्यमुखी खरीदने की मांग को लेकर हरियाणा में किसान पिछले कुछ दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे ही विरोध प्रदर्शन के दौरान 6 जून को पुलिस ने आंदोलित किसानों पर लाठीचार्ज किया था। किसानों ने तब अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था। इसके बाद कुरुक्षेत्र में 12 जून सोमवार को भी प्रदर्शनकारी किसानों ने, अपनी मांगों के समर्थन में राष्ट्रीय राजमार्ग अवरूद्ध कर दिया। आखिर किसान क्यों आंदोलित हैं ? किसानों की व्यथा क्या है, उन्होंने आंदोलन क्यों शुरू किया है और सबसे बड़ी बात कि किसानों की मांग कितनी जायज है ?आईए इसे समझने का प्रयास करते हैं। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के डेटा से पता चलता है कि इस साल मई में सूर्यमुखी 3983 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी, यह मई 2022 की कीमत से 35% और मई 2021 की कीमत से 32% कम है।
यह बात तय है कि सूरजमुखी की कीमतों में गिरावट का देश में तिलहन की कीमतों में आई नरमी से सीधा संबंध रहा है। सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि जिन 11 तिलहनों के मूल्य आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें से 8 में मई में सालाना आधार पर कीमतों में गिरावट देखी गई है। यद्यपि, तिलहन के थोक मूल्यों में आई इस गिरावट ने खाद्य तेल की कीमतों में कमी लाने में मदद की है, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू किसानों को परेशान करने वाला है। इस पर हम आगे चर्चा करेंगे। मई में जारी किए गए सीपीआई डेटा से पता चलता है कि खाद्य तेल की कीमतों में सालाना आधार पर 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। आयल सीड कीमतों में आई इस गिरावट की वजह से तेल की कीमतें कम हुईं हैं, इससे उपभोक्ताओं को बड़ी मदद मिली है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि इससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है, जो तिलहन उगाते है। वर्तमान में किसानों के विरोध के पीछे यही सबसे बड़ा फैक्टर है।
सूर्यमुखी की मात्रा और मूल्य पर राष्ट्रीय खाता सांख्यिकी (एनएएस) और सीएमआईई डेटा से पता चलता है कि हरियाणा देश में सूर्यमुखी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। 2020-21 में, देश में सूर्यमुखी उत्पादन की मात्रा और मूल्य में हरियाणा की हिस्सेदारी लगभग 10 फीसदी ही रही है। सूर्यमुखी उत्पादन में हरियाणा की हिस्सेदारी कर्नाटक की तुलना में बहुत कम है। कर्नाटक देश में सूर्यमुखी सबसे बड़ा उत्पादक है और देश के कुल उत्पादन में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है। लेकिन वहां सूर्यमुखी पर एमएसपी दिए जाने की मांग किसान नहीं कर रहे हैं। ओडिशा का भी यही है। कर्नाटक या ओडिशा को देखकर लगता है कि हरियाणा के किसानों का विरोध प्रदर्शन किसानों की खुद को राजनीतिक रूप से लामबंद करने का एक प्रयास है। विपक्षी राजीतिक दल इस तरह के विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से किसानों को अपने हित साधने के लिए लामबंद करते भी हैं।
किसान सूर्यमुखी की एमएसपी पर खरीद की मांग कर रहे हैं, क्योंकि सरकार ने सूरजमुखी के लिए एमएसपी घोषित की है। हरियाणा सरकार हो या केंद्र सरकार, किसानों की मांग के प्रति निरपेक्ष नहीं रह सकती। जब कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने 8 जून को खरीफ सीजन 2023-24 के लिए अपनी मूल्य नीति रिपोर्ट की घोषणा की है, तो उसने के लिए भी एमएसपी 6760 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की है। हाल ही में घोषित एमएसपी पिछले साल के एमएसपी से 5.6 प्रतिशत अधिक है और फसल के बाजार मूल्यों में गिरावट को देखते हुए, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, एमएसपी का निर्धारण किसानों के लिए एक आकर्षक स्थिति है। किसानों के विरोध के पीछे की राजनीति के बावजूद, इस तथ्य ने उनके विरोध प्रदर्शन को एक वस्तुनिष्ठ आधार दिया है।
जबकि खरीफ और रबी मौसम के लिए सीएसीपी की मूल्य नीति रिपोर्ट में 24 प्रमुख फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा की गई है, इनमें से अधिकांश अपनी प्रकृति में काल्पनिक हैं। सच्चाई यह है कि भारत में समर्थन मूल्य पर बड़े पैमाने पर केवल चावल और गेहूं की ही खरीद की जाती है। वह भी इस लिए क्योंकि खाद्य सुरक्षा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को जारी रखने के लिए इनका संग्रह किया जाना जरूरी है। भारत में सूर्यमुखी का कितना उत्पादन एमएसपी पर खरीदा जाता है? नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (नाफेड) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2012-13 से सूर्यमुखी की खरीद देश में कुल उत्पादन का 3 प्रतिशत से अधिक नहीं रही है। यह संख्या 2021-22 में सिर्फ 1.6 फीसदी थी।
हरियाणा में किसान, चावल और गेहूं के मामले में, सूर्यमुखी की सामान्य से अधिक खरीद के आदी हैं। नेफेड की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 2014-15 से हर साल सूर्यमुखी की खरीद के लिहाज से हरियाणा प्रमुख राज्यों में से एक था, जबकि सूर्यमुखी का सबसे बड़ा उत्पादक कर्नाटक 2012-13 और 2013-14 के बाद इस सूची में शामिल नहीं था।
आप किसानों को विरोध प्रदर्शन के दौरान राजमार्गों को अवरुद्ध करने और तोड़फोड़ करने जैसे तर्कहीन उपायों पर आगे बढ़ने के लिए दोषी ठहरा सकते हैं, आप यह भी आरोप लगा सकते हैं कि वे विपक्षी राजनीतिक दलों के कठपुतली बन गए हैं, लेकिन आपको यह स्वीकार करना होगा कि उनकी मांगें वाजिब है और वह सरकार की एमएसपी से जुड़ी घोषणाओं से मेल खाती है।
सोयाबीन का समर्थन मूल्य मई 2022 में 6484 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया गया था, जिसे अगले साल मई 2023 में कम करके 4851 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया।
मूंगफली का मूल्य पिछले साल 5777 रुपए प्रति क्विंटल था, जो इस साल बढ़कर 6433 रुपए कर दिया गया है।
सरसों का मूल्य पिछले साल 6417 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया था। जबकि इस साल काफी गिरावट के साथ इसकी कीमत 4978 रुपए निर्धारित की गई है।
सूर्यमुखी की कीमत पिछले साल 6116 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित की गई थी। जबकि, इस साल इसकी कीमत गिरावट के साथ 3983 रुपए प्रति क्विंटल रह गई है।
सूर्यमुखी के उत्पादन के मामले में कर्नाटक देश में सबसे ऊपर है। सूर्यमुखी केकुल उत्पादन का 47.2 फीसदी केवल कर्नाटक में पैदा होता है।
उत्पादन के मामले में दूसरे स्थान पर संयुक्त रूप से हरियाणा और ओडिशा का नंबर आता है। देश के कुल उत्पादन का 10.8 फीसदी सूर्यमुखी हरियाणा में पैदा होता है, जबकि ओडिशा में 10.7 फीसदी उत्पादन होता है।
सूर्यमुखी के उत्पादन के मामले में तेलंगाना का देश में तीसरा स्थान है। तेलंगाना में 7.2 फीसदी सूर्यमुखी का उत्पादन होता है। इसके बाद महाराष्ट्र (5.3 फीसदी) और बिहार (4.3 फीसदी) का नंबर आता है।
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