राज एक्सप्रेस। पिछले कुछ समय से भारतीय मुद्रा में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। डॉलर के मुकाबले रूपए की कीमत 82 के पार पहुंच गई है। ऐसे में अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार रूपए को मजबूत करने की दिशा में लगातार कदम उठा रही है। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भारतीय रुपये में करने की संभावना तलाशी जा रही है। सरकार इसको लेकर अन्य देशों से बातचीत भी कर रही है। श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए भारतीय रूपए का इस्तेमाल करने पर सहमत हो गया है। इसके अलावा भारत तजाकिस्तान, क्यूबा, लक्समबर्ग और सूडान समेत कई दूसरों देशों में भी बात कर रहा है। ऐसे में आज हम जानेंगे कि आखिर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कैसे तय होती है?
जितनी डिमांड उतनी कीमत :
दरअसल किसी भी देश की मुद्रा की कीमत डिमांड और सप्लाई पर आधारित होती है। यानी फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में जिस देश की मुद्रा की जितनी डिमांड होगी, उस देश की मुद्रा की कीमत भी उतनी ज्यादा होगी। यह पूरी प्रकिया ऑटोमेटेड है, यानी इस किसी भी देश की सरकार प्रभावित नहीं कर सकती है।
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या है?
दरअसल यह एक ऐसा मार्केट है, जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती है। यानी यहां आप एक देश की मुद्रा देकर दूसरे देश की मुद्रा खरीद सकते हैं। जिस रेट पर मुद्राएं खरीदी और बेची जाती है, उसे एक्सचेंज रेट कहते हैं।
मुद्रा की डिमांड :
अब आप यह सोच रहे होंगे कि फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में किसी भी देश की मुद्रा की डिमांड कम या ज्यादा कैसे होती है? तो बता दें कि इस समय दुनिया की सबसे प्रचलित करेंसी डॉलर है। दुनिया के ज्यादातर देश डॉलर में ही भुगतान करते हैं। ऐसे जब कोई देश किसी चीज का इम्पोर्ट करता है तो उसे डॉलर देना होता है, जबकि एक्सपोर्ट करने पर उसे डॉलर मिलता है। अब अगर इम्पोर्ट ज्यादा और एक्सपोर्ट कम हो तो उस देश को ज्यादा डॉलर खर्च करना पड़ता है जबकि उसे कम डॉलर मिलता है। इसके चलते भी उस देश की मुद्रा की कीमत में गिरावट आती है। ऐसे में अगर भारत दूसरे देशों से रूपए में कारोबार करता है तो डॉलर का लेन-देन कम हो जाएगा और रूपए का चलन बढ़ने से इसकी डिमांड भी बढ़ेगी। इससे रूपए की कीमत में तेजी आएगी।
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