राज एक्सप्रेस। भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब मिलकर मध्य-पूर्व के देशों को रेल नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी परियोजना पर जल्दी ही काम शुरू करने वाले हैं। बताया जाता है कि इस प्रोजेक्ट में मध्य-पूर्व को समुद्री लेन के माध्यम से दक्षिण एशिया से जोड़ा जाएगा। सूत्रों के अनुसार देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने इसी संबंध में रविवार को अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के अपने समकक्षों से सऊदी अरब में मुलाकात की थी। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से भारत की खा़ड़ी के देशों तक सीधी पहुंच कायम हो सकेगी। इससे भारत का पेट्रोलियम के आयात पर होने वाला खर्चा बचेगा।
एक अमेरिकी न्यूज वेबसाइट के अनुसार इस मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने अमेरिका द्वारा प्रस्तावित महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर चर्चा की। अमेरिका चाहता है कि इस प्रोजेक्ट में भारत की रेल नेटवर्क का जाल बिछाने की विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया जाए। इस प्रोजेक्ट में अमेरिकी की दिलचस्पी इस लिए है क्योंकि वह इस प्रोजेक्ट के माध्यम से मध्य-पूर्व में चीन और उसके महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के बढ़ते प्रभाव को सीमित करना चाहता है।
इस प्रोजेक्ट का नामकरण ब्लू डॉट नेटवर्क किया गया है। इस परियोजना की नींव पहली बार 18 माह पहले आई2यू2 फोरम में बातचीत के दौरान पड़ी थी। इस फोरम के भारत, इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात सदस्य हैं। 2021 के अंत में इस फोरम को मध्य-पूर्व में सामरिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर चर्चा के लिए बनाया गया था। मध्य-पूर्व को जोड़ने वाले प्रोजेक्ट में भारत की रेल नेटवर्क की विशेषज्ञता काफी अहम मानी जा रही है।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने गुरुवार को वाशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी में अपने एक भाषण के दौरान संकेत दिया था कि इस प्रोजेक्ट पर जल्दी ही काम शुरू किया जा सकता है। उन्होंने कहा था यदि आपको मेरे भाषण से और कुछ याद नहीं है, तो आई2यू2 को याद रखें, क्योंकि जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे आप इसके बारे में अधिक सुनेंगे। उन्होंने कहा था कि अमेरिका की आर्थिक टेक्नोलॉजी और कूटनीति और आगे बढ़ाने वाला यह प्रोजेक्ट दक्षिण एशिया, मध्य-पू्र्व और अमेरिका को जोड़ेगा। उनके अनुसार, मध्य-पूर्व में बाइडेन प्रशासन की रणनीति में क्षेत्रीय एकीकरण एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
सूत्रों के अनुसार भारत सरकार इस परियोजना से इसलिए जुड़ना चाहती है, क्योंकि यह भारत के तीन रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करता है। पहला उद्देश्य- चीन ने मध्य-पूर्व में अपने राजनीतिक प्रभाव में काफी विस्तार किया है। हाल ही में जब चीन की मध्यस्थता में सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति समझौता हुआ, तो यह भारत और अमेरिका दोनों के लिए चौंकाने वाला था। मध्य-पूर्व भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम है और इस समझौते से क्षेत्र में भारतीय हितों के प्रभावित होने का खतरा काफी बढ़ गया है।
अब भारत को एक मौका मिला है कि वह इस प्रोजेक्ट से जुड़कर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाए। इस प्रोजेक्ट से जुड़कर भारत पहले मध्य-पूर्व को रेल नेटवर्क से जोड़ने में अहम भूमिका निभाएगा फिर मध्य-पूर्व के देशों को समुद्री लेन से दक्षिण एशिया से जोड़ा जाएगा। इससे भारत तक कम खर्च और कम समय में तेल और गैस पहुंचेगी। खाड़ी के देशों में रह रहे और वहां काम कर रहे 80 लाख भारतीयों को भी इस प्रोजेक्ट से फायदा होगा। दूसरा उद्देश्य यह है कि यह प्रोजेक्ट भारत को रेलवे सेक्टर में एक इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माता के तौर पर ब्रांडिंग करने में मदद करेगा। भारत ने देश के भीतर एक मजबूत रेल नेटवर्क स्थापित किया है। श्रीलंका में भी भारत ने रेल नेटवर्क स्थापित करने में सहायता की है, इसी वजह से उसका आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ है कि वह इस प्रोजेक्ट की स्थापना में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
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