Petrol-Diesel को GST के तहत लाने से उपभोक्ताओं को तो फायदा होगा लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के लाभ में कमी आ जाएगी।  Syed Dabeer Hussain - RE
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GST: पेट्रोल (Petrol), डीजल (Diesel) पर एकल टैक्स से राजस्व पर क्या असर पड़ेगा?

वन नेशन वन टैक्स की पैरवी करने वाली एनडीए (NDA) सरकार के राज में दोनों प्रमुख ईंधन (Petrol-Diesel) पर कई कर (TAX) क्यों लगाए जा रहे हैं?

Author : Neelesh Singh Thakur

हाईलाइट्स –

  • पेट्रोल-डीजल के दाम बेलगाम क्यों?

  • एकल टैक्स के फायदे-नुकसान क्या?

  • GST से किसको, कितना फायदा होगा?

राज एक्सप्रेस। पेट्रोल (Petrol) और डीज़ल (Diesel) आखिर इतना महंगा क्यों बिक रहा है? वन नेशन वन टैक्स की पैरवी करने वाली एनडीए (NDA) सरकार के राज में दोनों ईंधन (Petrol-Diesel) पर कई कर (TAX) क्यों लगाए जा रहे हैं? पेट्रोल-डीजल पर एकल कर लागू करने पर केंद्र और राज्य सरकारों के राजस्व पर क्या असर पड़ेगा? अभी पेट्रोल एवं डीजल पर कितने टैक्स लगते हैं? सरकार पेट्रोलियम को जीएसटी (GST) के दायरे में क्यों नहीं ला रही? जानिये सभी सवालों के जवाब राज एक्सप्रेस के साथ।

भारत की केंद्रीय सरकार पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने के मामले में असमंजस की स्थिति में है। जीएसटी काउंसिल की 45वीं बैठक में कई अहम मुद्दों पर तो चर्चा हुई लेकिन पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाने को लेकर कोई फ़ैसला नहीं हो सका।

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पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स की स्थिति –

विक्रय एवं आयकर सलाहकार के मुताबिक पेट्रोल और डीजल पर मौजूदा समय में केंद्र और राज्य सरकारें टैक्स लगाती हैं। अभी पेट्रोल पर 29 प्रतिशत वैट लगता है। एडिशनल सेस 2.5 प्रतिशत है। वैट ऑन डीसीए मतलब डीलर कमीशन पर वैट 29 प्रतिशत अलग से है। इसके अलावा दो और सेस हैं जो 1-1 प्रतिशत लगते हैं। इसी तरह डीजल पर 19 प्रतिशत वैट एवं 1.5 रुपये प्रति लीटर सेस है। इसके अलावा डीजल पर भी पेट्रोल की ही तरह दो और सेस लागू हैं जो 1-1 प्रतिशत लगते हैं।

पेट्रोल, डीजल का गणित –

हम पेट्रोल और डीजल की कीमत संरचना में कर घटकों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। देखेंगे कि हाल के वर्षों में इन उत्पादों के कराधान में क्या बड़े बदलाव आए हैं। साथ ही वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के कारण हम खुदरा कीमतों पर पड़ने वाले प्रभावों को भी जानेंगे। केंद्र एवं राज्य को पेट्रोलियम उत्पाद पर टैक्स से कितना फायदा होता है? इसके लिए हमें पेट्रोल-डीज़ल पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू टैक्स और उससे प्राप्त होने वाले राजस्व के गणित को समझना होगा।

पिछले कुछ महीनों में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतें लगातार उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। 16 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली में पेट्रोल का दाम 105.5 और डीजल 94.2 रुपये प्रति लीटर था। इसी तरह मुंबई में इनकी कीमतें क्रमशः 111.7 रुपये और 102.5 रुपये प्रति लीटर थीं। दोनों शहरों में फ्यूल की कीमतों में यह अंतर एक ही उत्पाद पर संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली एवं महाराष्ट्र) की ओर से लागू कर की अलग-अलग दरों के कारण है।

ध्यान दीजिये; पब्लिक सेक्टर ऑयल मार्केटिंग कंपनीज़ यानी सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियों (OMCs) वैश्विक कच्चे तेल की कीमत में बदलाव के अनुसार, भारत में पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में दैनिक आधार पर संशोधन करती हैं।

डीलरों से लिए जाने वाले मूल्य में ओएमसीज़ (OMCs) द्वारा निर्धारित आधार मूल्य और माल भाड़ा शामिल होता है। 16 अक्टूबर, 2021 तक, डीलरों से लिया जाने वाला मूल्य पेट्रोल के मामले में खुदरा मूल्य का 42% और डीजल के मामले में खुदरा मूल्य का 49% था।

इसी तरह 16 नवंबर 2021 को आईओसी यानी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) के पेट्रोल का दाम राजधानी दिल्ली में 103.97 रुपये प्रति लीटर था। यह दाम कैसे और क्यों तय हुआ इसके लिए पेट्रोल के प्राइस बिल्डअप पर ध्यान देना होगा। इसके अनुसार डीलर्स को पेट्रोल 48.23 रुपये प्रति लीटर की दर पर प्रदान किया गया।

दिल्ली के लिए 16 नवंबर 2021 को जारी पेट्रोल का प्राइस बिल्डअप।

इस पर 27.90 रुपये प्रति लीटर की एक्साइज़ ड्यूटी एवं 23.99 रुपये प्रति लीटर का वैट जोड़ा गया। साथ ही औसतन 3.85 रुपये का डीलर कमीशन जोड़ने पर पेट्रोल का दाम उपभोक्ता के लिए 103.97 तय हुआ।

इस प्राइस बिल्डअप में से 27.90 रुपये प्रति लीटर एक्साइज़ ड्यूटी के तौर पर केंद्र सरकार के खजाने में पहुंचा जबकि 23.99 रुपये प्रति लीटर का वैट दिल्ली सरकार के कोष में जमा हुआ। इसका मतलब दिल्ली में उपभोक्ताओं को आधार मूल्य की दोगुनी कीमत से ज्यादा मूल्य पर पेट्रोल खरीदना पड़ रहा है।

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पेट्रोल-डीजल महंगा होने का कारण –

पेट्रोल-डीजल के महंगा होने का मूल कारण क्रूड ऑयल की अंतर राष्ट्रीय कीमतें हैं। क्रूड ऑयल की इंटरनेशनल प्राइस के आधार पर भारत में पेट्रोल और डीजल के प्रति लीटर दाम तय होते हैं। क्रूड महंगा होता है तो पेट्रोल-डीजल के दाम भी बढ़ जाते हैं।

इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित एक्साइज ड्यूटी के अलावा राज्य सरकारों के वैट के कारण भी पेट्रोल, डीजल के दाम बढ़ते हैं। इसलिए कर सलाहकार भारत में पेट्रोल-डीजल पर सभी राज्यों में एक समान कर लागू करने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि राज्य सरकारों की राय इससे जुदा क्यों है आइये जानते हैं।

जीएसटी का विरोध क्यों? –

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के वित्त मंत्री पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने के मामले में असहमति जता चुके हैं। उनके मुताबिक ऐसा करने का यह सही वक्त नहीं है क्योंकि इससे दिल्ली राज्य के राजस्व पर बुरा असर पड़ेगा और विकास कार्य प्रभावित होंगे।

इसी तरह महाराष्ट्र और केरल सरकार भी पेट्रोल और डीज़ल को उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने के मामले में अपना विरोध जाहिर कर चुकी हैं। महाराष्ट्र सरकार के वित्त मंत्री अजित पवार ने जीएसटी के 30 से 32 हजार करोड़ रुपये महाराष्ट्र सरकार को नहीं मिलने की बात पूर्व में कही थी।

मामले में कुछ राज्य सरकारों का कहना है कि केंद्र सरकार पेट्रोल-डीज़ल पर लागू केंद्रीय टैक्स को कम कर सकती है लेकिन राज्यों को प्रदत्त कर लागू करने के अधिकारों पर आंच नहीं आनी चाहिए। इसी तरह केरल सरकार ने भी पेट्रोल और डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने के मामले में अपनी असहमति दर्ज कराई है।

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री एवं बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी भी पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के प्रस्ताव का विरोध कर चुके हैं। सांसद मोदी का गणित कहता है कि पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के अधीन लाने से केंद्र और राज्य सरकारों को तकरीबन 4.10 लाख करोड़ रुपयों की हानि होगी। इस हानि की भरपाई करना दोनों के लिए मुश्किल होगा।

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जीएसटी से क्यों बाहर हैं पांच पेट्रोलियम उत्पाद -

भारत में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी उत्पाद एवं सेवा कर (जीएसटी/GST) व्यवस्था एक जुलाई 2017 से लागू की गई है। इसे लागू करते समय पांच पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया। इनमें पेट्रोल और डीज़ल भी शामिल हैं। इनको जीएसटी (GST) में शामिल न करने का कारण तब दोनों ईंधन से हासिल राजस्व पर केंद्र और राज्य सरकारों की निर्भरता बताया गया था।

केंद्र से गुहार -

पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों के कारण गैर बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने केंद्र सरकार से इन पर लागू एक्साइज़ ड्यूटी को कम करने की गुहार लगाई थी। मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का जुलाई में लिखा पत्र काफी सुर्खियों में भी रहा।

सीएम बनर्जी ने 2014-15 के बाद से ऑयल और पेट्रोलियम उत्पादों पर टैक्स वसूली के माध्यम से जमा राशि में 370 प्रतिशत की वृद्धि होने पर ध्यान आकर्षित किया। साथ ही वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार को 3.71 लाख करोड़ रुपयों की कमाई होने का हवाला देकर सेंट्रल गवर्नमेंट से केंद्रीय कर में कमी लाने की मांग की थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब केंद्र सरकार पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाने के मामले में कमर कस रही है।

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पेट्रोल-डीज़ल को GST में लाने से कीमत घटेगी - गडकरी

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में कहा था कि फ्यूल को GST के दायरे में लाने से पेट्रोल और डीजल के दामों में कमी आएगी। इससे राजस्व बढ़ने से राज्यों को फायदा मिलेगा। गडकरी ने मीडिया के समक्ष कुछ राज्यों पर GST के तहत ईंधन (fuel) को लाने के प्रस्ताव का विरोध करने की बात तो कही लेकिन उन्होंने उन राज्यों का नाम नहीं लिया जो प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।

केंद्रीय मंत्री ने केंद्र सरकार के उत्पाद शुल्क को कम करने के निर्णय को सकारात्मक पहल बताया। पेट्रोलियम कारोबार की नब्ज पहचानने वाले एक्सपर्ट्स के मुताबिक पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने से आम जनता का बहुत फायदा होगा।

सरकारों को होगा नुकसान -

पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी में लाने से इनकी कीमतों में 25 से 30 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। हालांकि इस कदम से केंद्र और राज्य सरकारों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। आपको बता दें नुकसान के बावजूद केंद्र सरकार जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम को लाने की बात इसलिए कर रही है क्योंकि केरल हाई कोर्ट में पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी में शामिल करने संबंधी एक याचिका दायर की गई थी जिस पर कोर्ट ने जीएसटी काउंसिल को निर्णय लेने कहा था।

एकल कर (TAX) प्रणाली से क्या होगा? -

पेट्रोल और डीजल (petrol and diesel) पर लागू किए जा रहे विविध करों के स्थान पर यदि वन नेशन वन टैक्स यानी एक देश एक कर (TAX)वाली अवधारणा लागू हो तो केंद्र और राज्यों के राजस्व पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। एक तरह से दोनों सरकारों के लिए पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाला टैक्स ही आमदनी का सबसे बड़ा जरिया है।

अनुमानित तौर पर भारत में प्रति वर्ष 10 से 11 हजार करोड़ लीटर डीज़ल का विक्रय होता है। इसी तरह 3 से 4 हजार करोड़ लीटर का पेट्रोल बेचा जाता है। दोनों पेट्रोलियम पदार्थों के मान से लगभग 14 हजार करोड़ लीटर डीज़ल-पेट्रोल हर साल विक्रय होता है। ऐसे में उदाहरण बतौर यदि इन पर राज्यों ने महज एक रुपये का ही वैट चार्ज किया तो राज्यों को होने वाले नुकसान का आंकलन स्वयं किया जा सकता है।
सौरभ चंद्र, पूर्व पेट्रोलियम सचिव

यहां यह ध्यान देना जरूरी है कि प्रत्येक राज्यों में हानि की स्थिति उन पेट्रोलियम पदार्थों पर संबंधित राज्यों में लागू बिक्री और टैक्स के आधार पर अलग-अलग होगी। केरल ने पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाने पर सालाना 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होने की अनुमानित आशंका जाहिर की है।

देखिये अभी तो पेट्रोल पर 29 प्रतिशत वैट लगता है। एडिशनल सेस 2.5 प्रतिशत है। वैट ऑन डीसी मतलब डीलर कमीशन पर वैट 29 प्रतिशत अलग से है। इसके अलावा दो और सेस हैं जो 1-1 प्रतिशत लगते हैं। इसी तरह डीजल पर 19 प्रतिशत वैट एवं 1.5 रुपये प्रति लीटर सेस है। इसके अलावा डीजल पर भी पेट्रोल की ही तरह दो और सेस हैं जो 1-1 प्रतिशत लगते हैं। दोनों के रेट कैल्कुलेशन में बहुत दिक्कत हो जाती है। डीलर्स लुब्रिकेंट्स भी बेचते हैं। ऐसे में डीलर भी असमंजस में रहते हैं कि आज का रेट क्या है क्योंकि वह रोज बदलता है।
वीरेंद्र कुमार दवे, अध्यक्ष, टैक्स बार एसोसिएशन, जबलपुर

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फिर इसका हल क्या है?

समीक्षकों की राय है कि पेट्रोल-डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाना मुश्किल जरूर है लेकिन असंभव नहीं। केंद्र और राज्य सरकारें कर लागू करने के अपने अधिकार से वंचित होना इसलिए नहीं चाहतीं क्योंकि उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा इसी से प्राप्त होता है। आम जनता को राहत देने पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अपने हिस्से की कमाई में कटौती के लिए तैयार होना पड़ेगा, तभी पेट्रोल-डीज़ल के दाम में लगी आग कुछ कम होगी।

एक परेशानी यह भी -

दरअसल उत्पाद एवं सेवा कर की दर भी एक परेशानी की वजह है। मौजूदा समय में केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल के आधार मूल्य पर अनुमानित तौर पर 100 प्रतिशत टैक्स वसूलती हैं। जबकि जीएसटी में सबसे उच्चतम टैक्स स्लैब 28 प्रतिशत है। ऐसे में जीएसटी के तहत आने से टैक्स 28 प्रतिशत लागू होगा तो सरकारों के समक्ष बाकी के 70 से 72 प्रतिशत टैक्स से हासिल होने वाली कमी की भरपाई का संकट पैदा हो जाएगा।

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सलाह सलाहकारों की -

कर सलाहकार मनोज पटेल का सुझाव है कि 28 प्रतिशत जीएसटी पर लग्ज़री कारों की तरह सरचार्ज लगाकर भी समस्या का समाधान किया जा सकता है। एक राय यह भी है कि केंद्र सरकार जीएसटी के बाद भी एक्साइज ड्यूटी चार्ज करे और फिर होने वाली कमाई को केंद्र और राज्य सरकार आपस में बांट लें।

डीलर सुबह पेट्रोल-डीजल के रेट आने का इंतजार करता है, ताकि वो ईंधन के दैनिक दाम को अपडेट कर सके। जीएसटी लागू होने से इस परेशानी से निजात मिल सकती है। सरकारें अपने खर्च कम कर लें तो एकल कर प्रणाली लागू हो सकती है। इसके लागू होने के बाद पेट्रोल-डीजल के टैक्स में 10 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। निवर्तमान कर 33-34 प्रतिशत की दर से लग रहा है। जीएसटी के दायरे में आने पर 23-24 फीसद टैक्स लागू हो सकता है।
वीरेंद्र कुमार दवे, अध्यक्ष, टैक्स बार एसोसिएशन, जबलपुर

गौरतलब है कि जीएसटी क़ानून पर केंद्र और राज्य सरकार के मध्य सहमति नहीं बन पा रही है। नियमानुसार राज्यों को जीएसटी लागू करने के बाद पांच वर्षों तक राजस्व प्राप्ति में हुई हानि की पूर्ति के लिए वित्तीय मदद प्रदान करने का प्रावधान है। इस नुकसान पूर्ति के प्रावधान को लेकर भी केंद्र और कई राज्य सरकारों के मध्य खींचतान मची है।

कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार पर जीएसटी की हानिपूर्ति बकाया रहने के आरोप लगाए हैं। महाराष्ट्र सरकार के वित्त मंत्री अजित पवार जीएसटी के 30 से 32 हजार करोड़ रुपये नहीं मिलने की बात पूर्व में कह चुके हैं। इसी तरह केंद्र और राज्य सरकारों के मध्य चालू वित्त वर्ष में जीएसटी राजस्व में होने वाले करीब 2.35 लाख करोड़ रुपए के नुकसान की पूर्ति पर खींचतान जारी है।

टैक्स बार एसोसिएशन अध्यक्ष का मानना है कि; दोनों पेट्रोलियम पदार्थ जीएसटी में आएंगे तो इससे यूनिफॉर्मिटी (uniformity) यानी एकरूपता आ जाएगी। उससे दोनों पेट्रोलियम पदार्थों की वास्तविक दर की गणना भी आसान हो जाएगी। अध्यक्ष दवे का कहना है कि अभी लागू टैक्स का कैल्कुलेशन करने में डीलर को काफी दिक्कत होती है। यहां तक कि असेसमेंट करने वाले कर सलाहकार भी कई बार परेशान होते देखे गए हैं। करों का स्वरूप अलग-अलग होने से कभी भी सही असेसमेंट नहीं हो पाता।

अध्यक्ष दवे की सलाह है कि पेट्रोल-डीज़ल को वन नेशन वन टैक्स स्कीम के तहत लाना चाहिए। ऐसे में एडिशनल टैक्स कम होने से डीलर को भी कर की गणना में आसानी होगी। कस्टमर को भी पता चल सकेगा कि उसे प्रति लीटर कितना भुगतान करना है। जनता पर करों का बोझ कम करने से पहले पेट्रोल-डीज़ल पर राज्यों में लागू अलग-अलग कर के फर्क को खत्म करना होगा।

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