राज एक्सप्रेस। किसी भी देश के बैंक की बागडोर उस देश के केंद्रीय बैंक के हाथ में रहती है जिस प्रकार भारत के बैंकों की कमान भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हाथ में होती है। ठीक वैसे ही दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों का संचालन विश्व बैंक (World Bank) द्वारा किया जाता है। इस प्रकार सभी देशों के सभी प्रकार के बैंकों का हाल वर्ल्ड बैंक को पता रहता है। जब भी किसी देश को कर्ज की जरूरत होती है तो, वह वर्ल्ड बैंक से ही मदद मांगता है। किसी भी देश में महंगाई की क्या स्थिति है, यह वर्ल्ड बैंक को पता रहती है। इसी के आधार पर अब वर्ल्ड बैंक ने लोगों की चिंता बढ़ाने वाली एक रिपोर्ट जारी की है।
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट :
विश्व बैंक द्वारा महंगाई को काबू में करने के लिए दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए जा रहे कदम को लेकर एक ताजा रिपोर्ट जारी की गई है। इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देशों के केंद्रीय बैंकों महंगाई को कंट्रोल करने के मकसद से ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। इस बढ़ोतरी और अन्य कई कारणों के चलते साल 2023 तक पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की शिकार हो सकती है। वर्ल्ड बैंक ने इस तरह की आशंका जताई है। इसके अलावा वर्ल्ड बैंक ने महंगाई को कम करने के लिए उत्पादन को बढ़ावा देने और आपूर्ति बाधाओं को दूर करने को लेकर जोर दिया है।
वर्ल्ड बैंक का कहना :
इस रिपोर्ट के माध्यम से वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि, 'दुनिया की तीनों बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका, चीन और यूरोपीय क्षेत्र की विकास दर में तेजी से गिरावट दर्ज हो रही है। ऐसे में अगले साल वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्तमान में साल 1970 की मंदी के बाद सबसे धीमी गति बढ़ रही है। इसी तरह पहले की मंदी की तुलना में वर्तमान में उपभोक्ता का विश्वास भी काफी कम है। दुनियाभर में केंद्रीय बैंकों द्वारा वैश्विक ब्याज दर में वृद्धि चार प्रतिशत तक पहुंच सकती है, जो 2021 से दोगुनी है। अमेरिका से लेकर यूरोप और भारत तक के केंद्रीय बैंक ब्याज दर में बढ़ोतरी कर रहे हैं। इसका मकसद मुद्रास्फीति को कंट्रोल करना है। हालांकि, यह निवेश को कम करता है और इसका विकास की रफ्तार पर भी असर पड़ता है। इसी तरह नौकरियों के अवसर भी काफी हद तक कम हो जाते है।'
वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष का कहना :
वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष डेविड मलपास ने कहा कि, 'वैश्विक विकास की रफ्तार तेजी से धीमी हो रही है और आगे भी इसके धीमे बने रहने की आशंका है। मेरी गहरी चिंता यह है कि ये रुझान लंबे समय तक बने रह सकते हैं, जो उभरते बाजार और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए विनाशकारी हैं। मुद्रास्फीति को कम करने के लिए उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ आपूर्ति बाधाओं को दूर करने पर जोर दिया जाना चाहिए।'
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