कोलकाता, पश्चिम बंगाल। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 2000 रुपये के नोट को वापस लिया जाना एक गैर-घटना है, लेकिन इसका तरलता, बैंक जमा और ब्याज दरों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय स्टेट बैंक समूह (एसबीआई) के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ. सौम्य कांति घोष के अनुसार डिजिटल भुगतान में, भारत मूल्य और मात्रा दोनों के संदर्भ में नए मील के पत्थर देख रहा है, जो हमारे भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र की मजबूती और उपभोक्ताओं के व्यापक स्तर द्वारा स्वीकृति का संकेत है। यदि हम कम से कम सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) के कुल डिजिटल भुगतान प्रतिशत को देखें, तो यह वित्त वर्ष 2016 में 668 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 767 प्रतिशत हो गया है।
उन्होंने कहा कि जीडीपी के रूप में खुदरा डिजिटल भुगतान (आरटीजीएस को छोड़कर) वित्त वर्ष 2016 में 129 प्रतिशत से वित्त वर्ष 2023 में 242 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इन सबके बीच, यूपीआई भारत में सबसे लोकप्रिय और पसंदीदा भुगतान मोड के रूप में उभरा है। भारत में व्यक्ति से व्यक्ति के साथ-साथ तथा व्यक्ति से व्यापारी लेनदेन में अग्रणी है, जो कुल डिजिटल भुगतान का 73 प्रतिशत है।
श्री घोष ने कहा कि हमारे शोध से पता चलता है कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्र अब यूपीआई में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए जिम्मेदार हैं, जो लोकप्रिय धारणा को तोड़ते हैं कि मेट्रो/शहरी क्षेत्र डिजिटल भुगतान अपनाने और नवाचारों का बड़ा केन्द्र हैं। शीर्ष 15 राज्यों का मूल्य/मात्रा में 90 प्रतिशत हिस्सा है। यूपीआई ने न केवल भारत के भुगतान परि²श्य को बदल दिया है, बल्कि उस उद्देश्य को भी महत्वपूर्ण रूप से बदल रहा है जिसके लिए मुद्रा का उपयोग किया जाता है।
उन्होंने कहा कि शोध में पाया गया कि 18 नवंबर से एटीएम में डेबिट कार्ड के माध्यम से नकद निकासी में कमी आई है, जो यूपीआई के लिए रास्ता बना रहा है।
श्री घोष ने कहा कि भले ही 2000 रुपये के नोट निकासी का प्रभाव एक गैर-घटना है, तरलता, बैंक जमा और ब्याज दरों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बैंक पहले से ही इनमें से कुछ नोटों को अपनी करेंसी चेस्ट में रखेंगे, इस प्रकार डिपॉजिट पर प्रभाव सीमित होगा और हमारा मानना है कि करेंसी चेस्ट में रखी राशि को छोड़कर तीन खरब रुपये की लगभग पूरी राशि बैंकिंग प्रणाली में वापस आ जाएगी।
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