विस्तार से जान लें, क्या है यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP), क्या है इतिहास ? Syed Dabeer Hussain - RE
अर्थव्यवस्था

विस्तार से जान लें, क्या है यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP), क्या है इतिहास ?

देश की GDP ग्रोथ के लगाए अनुमान को समझने के लिए हमे पहले यह जानने की जरूरत है कि, आखिर यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है ? तो विस्तार से जान लें, क्या है यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP)

Author : Kavita Singh Rathore

GDP : देश की GDP ग्रोथ के लगाए अनुमान को समझने के लिए हमे पहले यह जानने की जरूरत है कि, आखिर यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है ? तो बता दें, देश की घरेलू सीमा के अंतर्गत एक वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को मापने का पैमाना या जरिया सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहलाता है। भारत में GDP की गणना तिमाही में की जाती है। जीडीपी का आंकड़ा अर्थव्यवस्था के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में उत्पादन की वृद्धि दर पर आधारित होता है। इन क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ने या घटने के औसत के आधार पर GDP दर तय होती है।

आसान शब्दों में GDP :

आसान शब्दों में कहें तो, किसी भी देश की घरेलु सीमा के भीतर स्थित निवासी उत्पादक और गैर निवासी उत्पादक इकाई द्वारा एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुए और सेवाओं का अंतिम मौद्रिक मूल्य सकल घरेलु उत्पाद कहलाता है।

GDP निकालने के दो आधार होते है:

साधन लागत पर : किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में उपयोग या प्रयुक्त उत्पादक कारको के सम्पूर्ण मूल्य को साधन लागत कहा जाता है।

बाजार लागत पर : बाजार मूल्य वो मूल्य है जिसका एक उपभोगता द्वारा खरीदते समय किसी विक्रेता को सौंपा जाता है।

क्या दर्शाती है GDP:

GDP एक देश के आर्थिक स्वास्थ्य को इंगित करती है और साथ ही किसी विशिष्ट देश के लोगों के जीवन स्तर को निर्दिष्ट करती है, यानी कि GDP उस देश के लोगों के जीवन स्तर को बढ़ाती है । (किसी देश में अच्छी GDP होना मतलब उस देश में रहना अच्छा माना जाता है।)

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का इतिहास :

GDP को सबसे पहले अमेरिका के एक अर्थशास्त्री साइमन ने 1935-44 के दौरान इस्तेमाल किया था। इस शब्द से साइमन ने ही अमेरिका को परिचय करवाया था। अमेरिका में सन 1937 में वहां के एक अर्थशास्त्री साइमन कुज़्नेत्स ने वहां की कांग्रेस में एक बिल प्रस्तुत किया, उस बिल का नाम नेशनल इनकम 1929 टु 1935 था। इन्होने यह प्रस्ताव दिया की अमेरिका की अर्थव्यस्था को मापने के लिए उसमे जितने भी लोग या घटक काम कर रहे हैं, चाहे वो किसान हो या एक सरकारी कर्मचारी या बहु राष्ट्रीय कंपनी हो, या देश में काम करने वाली देशी कम्पनीयां हो उन सबके द्वारा उत्पादित उत्पाद या सेवा का बाजार मूल्य या मार्केट प्राइस की गणना की जाये। यह एक क्रान्तिकारी विचार था जो किसी देश की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए एक सटीक औजार था। यह विचार इतना प्रबल था की धीरे धीरे पूरे विश्व में इसको अपना लिया गया। समूची दुनिया ने 1950 तक इस प्रणाली को अपना लिया था। भारत ने सन 1950 में इस प्रणाली को अपनाया था।

उदहारण :

हम एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते है, मान लें कि, यदि एक देश में pen बनाए जाते हैं और उसमे एक साल में सिर्फ दस pen बनाए तो उस साल का GDP होगा 10 pen और एक pen की कीमत यदि 10 रुपये हैं तो 10 pen की कीमत होगी 100 रुपये तो रुपये में GDP हुआ 100 pen इसे GDP कहते हैं।

भारत में GDP में योगदान करने वाले क्षेत्र:

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में तीन क्षेत्रों से अर्थव्यवस्था में पैसा जुड़ता हैं -

  • कृषि

  • उद्योग

  • सेवा

कृषि :

कृषि क्षेत्र मे रोजगार देने का बहुत सामर्थ्य हैं किन्तु भारत की जीडीपी में इनका योगदान काफी कम हैं। 1950 (जिस वर्ष से भारत में जीडीपी लागू हुआ ) से लेकर 2014 तक के आंकड़ों को देखे तो हम पाएंगे की शुरूआती वर्षो में भारत में कृषि का योगदान सर्वाधिक था, जो अब सबसे कम हो गया हैं। अभी भारत की अर्थ व्यवस्था में कृषि का 1.3% योगदान है।

उद्योग :

उद्योग क्षेत्र मे रोजगार देने का बहुत सामर्थ्य हैं। उद्योग क्षेत्र में अधिक लोग रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। वहां वो लोग भी काम कर सकते हैं जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और थोड़ी बहुत ट्रेनिंग के बाद भी नौकरी कर सकते हैं। भारत सरकार औद्योगिक क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए अत्यंत प्रयास कर रही हैं। मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रम सरकार ने भारत में औद्योगिक क्रान्ति लाने के लिए ही चलायें हैं। अभी भारत की अर्थव्यवस्था में उद्योग क्षेत्र का 7.4% योगदान है।

सेवा :

सेवा क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान हैं। हम कह सकते है कि सेवा क्षेत्र की एक कमी यह हैं की यह सभी लोगो को रोजगार के सामान अवसर प्रदान नहीं करती, क्योंकि इसके लिए उच्च स्तर की योग्यता और कुशलता की आवश्यकता होती हैं। अभी भारत की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का 9.2% योगदान है।

GDP के कार्य:

  • GDP में होने वाले वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन ही अर्थ व्यवस्था की बड़ी हुई दर है।

  • इसके आकार से देश की आर्थिक शक्ति का पता लगाया जा सकता है लेकिन इससे उत्पाद एवं सेवाओं की गुणवत्ता का पता नहीं चल पाता है।

  • IMF और वर्ल्ड बैंक के सदस्य देशो का तुलनात्मक विश्लेषण इसी के आधार पर किया जाता है।

GDP में शामिल आय :

  • GDP के अंतर्गत विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय को शामिल किया जाता है, किन्तु विदेशो में बसे भारतीयों द्वारा भेजी गई आय को शामिल नही किया जाता है।

  • GDP में सभी लोग जो भी अर्थव्यवस्था में कुछ योगदान कर रहे होते हैं उन सब को इसमें शामिल किया जाता हैं, चाहे वो एक किसान हो, उद्योगपति हो, नौकरी पेशा व्यक्ति हो, बहुराष्ट्रीय कंपनी हो, अथवा सरकार हो।

GDP की गणना:

GDP को तीन तरीको से मापा जा सकता हैं और उन तीनो तरीको से जो मान निकलता हैं वो बराबर होता हैं। इन तीनो में से किसी भी तरीके से देश की जीडीपी को मापा जा सकता है।

1. व्यय पद्धति ( Expenditure Method) :

इस दृष्टिकोण में यह सिद्धांत काम करता हैं की सभी उत्पाद (वस्तुएं और सेवाएं ) किसी न किसी के द्वारा खरीदी जाएंगी, अत: कुल उत्पाद का मूल्य लोगो के वस्तुएं या सेवा खरीदने की कुल लागत के बराबर होना चाहिए। उदाहरण यदि किसी देश में 1 साल में सभी वस्तुएं या सेवा को खरीदने के लिए यदि 1000 करोड़ रूपए लगे तो यह 1000 करोड़ उस देश की जीडीपी होगी।

'GDP = C+I+G+(X-M)'

C = निजी उपभोग ( सेवाओं या वस्तुओं की प्रथम खरीद) (Consumer )

I = सकल निवेश (शेयर, बैंक, विदेशी निवेश, बीमा में निवेश आदि ) (Investment )

G = सरकार द्वारा किया गया समस्त प्रकार का खर्च (Government)

X = निर्यात (Export )

M = आयात (Import )

2. वर्धित मूल्य पद्धति ( Production Method) :

सकल घरेलु उत्पाद एक वर्ष में बने सभी वस्तुओं और सेवाओं का बाजार भाव हैं। इस तरीके में किसी सामान या सेवा के बनने में प्रत्येक चरण में कितना शुद्ध मूल्य जोड़ा गया हैं, इसको जोड़ने से भी जीडीपी का आंकड़ा निकल जाएगा इसका सूत्र हैं।

GDP (मार्केट प्राइस पर ) = कारक मूल्य पर जीडीपी + अप्रत्यक्ष टैक्स – सब्सिडी

3. आय पद्धति (Income Method) :

इस पद्धति के अनुसार सकल घरेलु उत्पाद किसी भी देश के सभी नागरिको की कुल आय का जोड़ हैं। देश में काम कर रही सभी फर्मो द्वारा कमाया गया धन ही अनेक उत्पादन के कारको में बांटा जाता हैं जैसे तनख्वाह, मजदूरी, प्रॉफिट, शुद्ध ब्याज, किराया आदि। इसको सरल भाषा में ऐसे समझ सकते हैं की जब व्यक्ति पैसे कमाता है पैसे उस व्यक्ति के लिए वह आय हुई और जब वो सामान खरीद कर पैसे खर्च करता है, तो वह दूसरे व्यक्ति के लिए आय बन जाती है। इस प्रकार एक पूरा चक्र बनता हैं जिसे फ्लो ऑफ़ इनकम भी कहते हैं।

इस पद्धति का सूत्र हैं

'GDP = W + P + In + R'

W = तनख्वाह + मजदूरी

P = शुद्ध मुनाफा

In = शुद्ध ब्याज

R = किराये से आय

GDP की कमियां :

  • GDP में बहुत सी चीजो को शामिल नहीं किया जाता जैसे पर्यावरण, सेहत आदि।

  • GDP में वो धन भी शामिल नहीं होता जिसका हिसाब नहीं रखा जाता। जैसे हवाला का पैसा, कर चोरी का पैसा, हम यह नहीं कह सकते की GDP पूरे देश की आर्थिक हालत की सही जानकारी बताती हैं।

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