राज एक्सप्रेस। रूस के साथ रुपए में द्विपक्षीय कारोबार को बढा़वा देने की बातें तो की जाती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इसमें कई बाधाएं, जो इस योजना को आगे नहीं बढ़ने दे रही हैं। रूस ने भारत के साथ रूपये में कारोबार करने की पेशकश तो की है, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति बिल्कुल अलग है। सच्चाई यह है कि भारत को तेल की बिक्री करने वाली रूसी कंपनियां अब तक भारतीय रूपये में भुगतान लेने को तैयार नहीं है। रत्न-आभूषण और दवाइयों आदि का भारत से आयात करने वाली रूसी कंपनियां रुपये के स्थान पर चीन के युआन व यूरो में भुगतान लेने को ज्यादा महत्व दे रही हैं। यह मांग भारतीय कारोबारियों को पसंद नहीं आ रही। इन दिक्कतों को दूर करने को लेकर कारोबार, अर्थ, विज्ञान, तकनीक व संस्कृति पर भारत-रूस अंतर सरकारी आयोग (आइजीसी) की बैठक हुई। इस बैठक में भी यह मुद्दा उठाया गया। बैठक में दोनों देशों के प्रतिनिधि किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। तय किया गया कि दोनो देशों की सरकारों के बीच इस मुद्दे पर आगे भी चर्चा जारी रखी जाए।
अंतर सरकारी आयोग की बैठक की अध्यक्षता विदेश मंत्री एस जयशंकर और रूस के उप प्रधानमंत्री और उद्योग व कारोबार मंत्री डेनिस मांतुरोव ने की। उल्लेखनीय है कि अंतर सरकारी आयोग दोनो देशों के आर्थिक व सांस्कृतिक रिश्ते को दिशा दिखाने का काम करता है। डेनिस मांतुरोव ने विदेश मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से भी अलग से बात की है। इन दोनो बैठकों मे भी रूपये में कारोबार का मुद्दा उठा। सीतारमण से मुलाकात के बाद मांतुरोव ने कहा हमारे बीच रूपये-रूबल में कारोबार करने को लेकर भी बात हुई है जो दोनो देशों के लिए काफी अच्छा साबित हो सकता है। ऐसा करने से हमारे कारोबार को सुरक्षा मिलेगी। उन्होंने कहा कि हम अगले दिनों में इस मुद्दे को बातचीत को निर्णायक अंत पर पहुंचाने का प्रयास करेंगे। दरअसल, अभी रूस पर अमेरिका व पश्चिमी देशों की तरफ से कई प्रतिबंध लागू किए गए हैं। इन प्रतिबंधों से बचाव के लिए ही रूस ने स्थानीय मुद्रा में कारोबार शुरू करने की बात कही थी।
भारतीय रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) ने भी 11 जुलाई 2022 में अंतरराष्ट्रीय कारोबार में रूपये से भुगतान शुरू करने को लेकर एक अधिसूचना जारी की थी। उद्योग जगत से जुड़े सूत्रों का कहना है कि रूस की कंपनियां चीन के युआन में भुगतान करने को ज्यादा महत्व देती हैं। वजह यह है कि उनका चीन के साथ आयात काफी ज्यादा होता है। यूक्रेन युद्ध के बाद चीन में तैयार उत्पादों पर रूस की निर्भरता बढ़ गई है। रूस की कंपनियां युआन को इसलिए पसंद कर रही हैं कि इससे वे चीन को आसानी से भुगतान कर सकती हैं। दूसरी तरफ भारत से उनका कारोबार पेट्रोलियम उत्पादों तक सीमित है और वह भी भारत खरीदार है। दूसरी ओर, भारतीय बैंक भी अनिश्चितता के मौजूदा माहौल में रुपये और रूबल पर भरोसा करने से हिचक रही हैं। पिछले एक महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है, जो इनकी हिचक को सही साबित कर रहा है।
मांतुरोव के साथ बैठक में भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने रूस को भारत से तैयार उत्पादों का आयात बढ़ाने की मांग की थी, ताकि कारोबार के मौजूदा असंतुलन को दूर किया जा सके। इन परेशानियों के बावजूद भारत और रूस के बीच होने वाले द्विपक्षीय व्यापार में वर्ष 2023-24 में भी तेजी से वृद्धि होने की संभावना है। मांतुरोव ने कहा एक वर्ष में दोनो देशों के बीच ट्रेड 2.6 गुना बढ़ कर 35 अरब डॉलर हो गया है। दोनो देशों ने वर्ष 2025 तक 30 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा था, जो काफी पहले पूरा हो गया है। भारत रूस से कच्चे तेल के अलावा भारी मात्रा में उर्वरक भी रूस से खरीदता है। संभव है कि भारत व रूस की आगामी शिखर बैठक में द्विपक्षीय कारोबार का नया लक्ष्य तय किया जाए। हाल के दिनों में भारत में जिस तरह विनिर्माण सेक्टर का विकास हो रहा है, उसे देखते हुए माना जा सकता है कि अगले दिनों में भारत से निर्यात में बड़ोतरी होगी और द्विपक्षीय व्यापार केवल तेल और हतियारों के लेनदेन तक सीमित नहीं रहेगा।
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