भारतीय मुद्रा पर नूरिएल रुबिनी के विचार Social Media
अर्थव्यवस्था

समय के साथ रुपया विश्व की सबसे मजबूत करंसीज में से एक बन सकता है : नूरिएल रुबिनी

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा करंसी को स्टेबल करने और महँगाई को काबू करने के लिए किए गए प्रयासों पर नूरिएल रुबिनी का नजरिया है कि अब तक आरबीआई ने अच्छा काम किया है।

Priyank Vyas

राज एक्सप्रेस। इंडियन रूपी विश्व के अन्य देशों के साथ किए जाने वाले व्यापार में मुख्य भूमिका अदा कर सकता है, खासतौर से सुदूर साउथ में स्थित देशों के साथ। उसे व्यापार की वैल्यू मेजर करने में यूनिट की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, भुगतान के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, और उसका इस्तेमाल मुद्रा के रूप में स्टोर करने में भी किया जा सकता है। निश्चित तौर पर भारतीय रूपया आने वाले समय में वैश्विक करंसी को विविधता प्रदान करने वाली करंसी के रूप में मजबूत भूमिका निभा सकता है। यह मानना है न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस के पूर्व प्रोफेसर और प्रसिद्ध इकनॉमिस्ट नूरिएल रुबिनी का।

ग्लोबल लेवल के अनुरूप भारत की मैन्यूफैक्चरिंग कैपेसिटी को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इस पर उनकी राय है कि भारत द्वारा मैन्यूफेक्चरिंग बेस बनने की कोशिशें और सही इंडस्ट्रियल पॉलिसीज सराहनीय है, बावजूद इसके इस दिशा में भारतीय पॉलिसी मेकर्स द्वारा कुछ गलतियां की जा रही हैं।

पहली यह, कि ग्लोबल फर्म्स को भारत में प्रोडक्शन के लिए आकर्षित करने के साथ ही इस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि यहाँ बनाए जाने वाले प्रोडक्ट्स वैश्विक स्तर पर कंपीट कर पाएंगे या नहीं? साथ ही अगर किसी फॉरेन कंपनी को मैन्यूफेक्चरिंग के लिए मिलने वाला कच्चा माल दूसरे देशों की तुलना में महँगा मिलेगा तो वे भारत में मैन्चुफेक्चरिंग करने से कतराएंगे।

उन्होंने इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की है कि भारत फॉरेन ट्रेड एग्रीमेंट्स और रिजनल ट्रेड एग्रीमेंट्स करने से बचता रहा है। प्रोफेसर रुबिनी के अनुसार अगर आप अपो डोमेस्टिक मैन्युफेक्चरर्स के लिए प्रोटेक्टिव बने रहकर उन्हें सबसिडी देते रहेंगे तो आप वैश्विक स्तर पर कंपीट कैसे करेंगे?

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा करंसी को स्टेबल करने और महँगाई को काबू करने के लिए किए गए प्रयासों पर उनका नजरिया है कि अब तक आरबीआई ने अच्छा काम किया है। होलसेल इंफ्लेशन कम रहने के बावजूद रिटेल इंफ्लेशन आरबीआई की उम्मीद से अधिक रही है, साथ ही कमजोर वैश्विक संकेतों के चलते आरबीआई को रेपो रेट एक बार फिर बढाना पड़ सकता है। हालाँकि यह माना जा रहा था कि फरवरी में 0.25 बीपीएस पॉइंट बढ़ाने के बाद इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके साथ ही उसे विदेश मुद्रा भंडार को भी खर्च करना पड़ सकता है।

फिर भी आने वाले समय में भारतीय करंसी के मजबूत होने की संभावना है क्योंकि भारत जो कि चीन के बाद सबसे बड़ा तेल आयातक है, ने रशिया से कच्चे तेल का आयात रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ाया है, जो भारतीय रुपए के लिए काफी महत्वपूर्ण है। रुबिनी के अनुसार भारतीय रुपए को डॉलर के मुकाबले कंपीटिव बनाए रखना रिजर्व बैंक का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।

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