इस समय रेपो रेट 4% और रिवर्स रेपो रेट 3.35% है। सांकेतिक तस्वीर  Neelesh Singh Thakur – RE
आर्थिक नीति

RBI मौद्रिक नीति समिति बैठक शुरू, फैसले तय करेंगे इस दिवाली फेस्टिव मार्केट का रुख

भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (Monetary Policy Committee) (एमपीसी/MPC) अर्थात मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुधवार को शुरू हुई।

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स –

  • घटेगी ब्याज दर या बढ़ेगी?

  • महंगाई कम होगी या बढ़ेगी?

  • फैसला शुक्रवार को पता चलेगा

राज एक्सप्रेस (Raj Express)। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई/RBI) यानी भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (Monetary Policy Committee) (एमपीसी/MPC) अर्थात मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुधवार को शुरू हुई।

महंगाई, ब्याज दर से लेकर देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार तय करने वाली प्रत्येक दो माह में आयोजित होने वाली तीन दिवसीय खास बैठक के निर्णयों का खुलासा शुक्रवार को बैठक के आखिरी दिवस होगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती कीमतों के साथ घरेलू मुद्रास्फीति के निदान का लक्ष्य इस समिति की बैठक में खास होने वाला है। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास (Shaktikanta Das) शुक्रवार को छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी/MPC)के निर्णयों की जानकारी देंगे।

अस्थिर ब्याज की स्थिर परंपरा -

मार्केट ट्रेड एक्सपर्ट्स का मानना ​​है कि केंद्रीय बैंक रेपो रेट (repo rate) को यथास्थिति बरकरार रखेगा। ऐसा लगातार आठवीं बार होगा जब नीतिगत दरों (repo rate) पर संभवतः बदलाव न हो। मौजूदा रेपो रेट 4% और रिवर्स रेपो रेट 3.35% है।

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पिछली मीटिंग के बाद आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई का आकलन संशोधित करते हुए उसे 5.1 फीसदी से बढ़ाकर 5.7% कर दिया था। RBI ने जुलाई-सितंबर 2021 में देश के ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (Gross Domestic Product/GDP/जीडीपी) यानी सकल घरेलू उत्पाद की दर 7.3% तक रहने का अनुमान जताया था।

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त्रासद महंगाई -

आरबीआई की छह सदस्यीय समिति इन्फ्लेशन (inflation) यानी मुद्रास्फीति अर्थात महंगाई पर चिंतित रह सकती है। दरअसल मुद्रास्फीति या महंगाई अर्थव्यवस्था में समय के साथ विभिन्न माल और सेवा मूल्यों में होने वाली एक सामान्य वृद्धि से है।

जब सामान्य कीमतें बढ़ती हैं, तब मुद्रा की हर ईकाई की क्रय शक्ति (purchasing power) में कमी आती है। इसका मतलब जितने दाम देकर पहले जितना माल या सेवा प्राप्त की जा सकती थी उसमें मुद्रास्फीति से कमी आ जाती है।

ऐसे में एमपीसी की चिंता वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य में कमी लाने की भी होगी। जगत विख्यात है इन दिनों भारत में तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले की कीमतें आसमान निहार रही हैं। दैनिक जरूरत की कीमतों में कमी आने के बजाए प्राइज़ इंडेक्स ऊपर की ओर चढ़ता जा रहा है।

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सप्लाई चेन सुधरने से राहत -

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जुलाई के 5.59 फीसदी से घटकर अगस्त में 5.3% हो गई। आर्थिक सलाहकारों के मुताबिक कोविड-19 (covid-19) जनित लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दिए जाने से मार्केट की सप्लाई चेन सुधरी है।

इससे बाजार की क्षमता का उचित दोहन शुरू हो पाया है बल्कि रोजगार भी मिल पा रहा है। इस कारण भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दर या समायोजन का रुख बदलने जैसा कोई तात्कालिक दबाव नजर नहीं आता।

हालांकि एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि एमपीसी चलनिधि प्रबंधन पर रोडमैप प्रदान कर सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, मुद्रास्फीति और बढ़ती मांग को रोकने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के द्वारा ब्याज दरों पर यथास्थिति बनाए रखने की संभावना है।

विदेशी धन

तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में व्यापारी एवं विश्लेषकों का मानना है कि केंद्रीय बैंक बैंकिंग प्रणाली से रिकॉर्ड तरलता निकालने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि यह अपने विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप को तेजी से आगे के बाजार में स्थानांतरित कर रहा है।

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अगस्त-सितंबर’ 21 के महीने के लिए उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि आर्थिक गतिविधि अपने पूर्व-महामारी के स्तर तक पहुंच रही है। साथ ही COVID की एक और लहर के जोखिम धीरे-धीरे कम हो रहे हैं, हालांकि वसूली की गति अभी भी असमान है। मतलब अर्थव्यवस्था का लंगर अभी अच्छी तरह से नहीं डला है।

वैश्विक जिंस कीमतों में वृद्धि, COVID से संबंधित व्यवधानों, टीकाकरण की प्रगति और नीतिगत समर्थन के कारण आर्थिक पुनरुद्धार के संयोजन के परिणाम स्वरूप अधिकांश विकसित और विकासशील बाजारों में मुद्रास्फीति में तेजी आई है।

डिस्क्लेमर आर्टिकल प्रचलित मीडिया एवं एजेंसी रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।

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