हाइलाइट्स
क्या सरकार ने की RIL की मदद
रिलायंस को जुटाने थे 53,000 करोड़
लॉकडाउन में नियम बदलने पर उठे सवाल
फेसबुक, विस्टा, सिल्वर लेक, जनरल अटलांटिक का रोल
राज एक्सप्रेस। भारत की सबसे बड़ी निजी कॉर्पोरेट इकाई रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) का सबसे बड़ा शेयर्स इश्यू 3 जून को समाप्त हुआ। इसे घोषित मूल्य 53,124 करोड़ रुपये के मुकाबले 1.59 गुना ग्राहकों का समर्थन मिला।
इंतजार...2021...
रिलायंस को यह राशि अपने शेयरधारकों से तब प्राप्त होगी जब ग्राहकों से उसे अधिकार मुद्दे पर पूर्ण भुगतान हासिल हो जाएगा। गौरतलब है मामले में शेयर्स के अधिकार इश्यू का पूर्ण भुगतान करना साल 2021 के अंत तक निर्धारित है।
...अमीर कंपनी का कर्ज...
आरआईएल के शेयर अधिकारों का मुद्दा शायद कंपनी की रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। कंपनी के लिए एक तरह से यह चुनौती भी थी कि, वह अपने बढ़ते कर्ज का भुगतान करने के लिए पर्याप्त पूंजी जुटाए।
पिछले साल अगस्त 2019 में एक तरह से देश में भारतीय कारोबारियों के मुखिया, एशियाई रिचेस्ट पर्सन्स में शुमार गुजराती व्यापारी मुकेश धीरूभाई अंबानी ने कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) को "कर्ज-मुक्त" करने की योजना की घोषणा की थी।
“अरामको” से “आराम”
पूंजी जुटाने की योजना में असफलता के बाद...सऊदी अरब के अरामको (Aramco) द्वारा RIL के कच्चे तेल की रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल्स के कारोबार में लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया। इसके बाद कंपनी ने अपने दूरसंचार और मोबाइल इंटरनेट डेटा में निवेश के जरिए पूंजी जुटाकर बाधाओं को दूर किया।
बाद के महीनों में कंपनी ने अपने दूरसंचार और मोबाइल इंटरनेट डेटा व्यवसाय रिलायंस जियो में निवेश के जरिये पूंजी जुटाने के माध्यम से बाधाओं के हल का एक रास्ता एक तरह से ढूंढ़ निकाला।
“RIL” में “फेसबुक” का “फेस”
पिछले दिनों रिलायंस जियो में सोशल मीडिया जायंट फेसबुक इनकॉरपोरेटेड के 43,574 करोड़ रुपया के साथ ही तीन यूएस-आधारित निजी इक्विटी फर्मों (विस्टा इक्विटी पार्टनर्स, सिल्वर लेक और जनरल अटलांटिक) के 22,620 करोड़ रुपया निवेश की घोषणा की गई। जिसके बाद RIL ने अधिकार जारी किये। गौरतलब है इश्यू 20 मई को जारी किया गया।
दो और करार -
RIL में राइट्स इश्यू का मुद्दा जारी रहने के बावजूद तेज पूंजी-वृद्धि की होड़ जारी रही। इस बीच दो और विदेशी कंपनियों ने निवेश के इरादों का इजहार किया। अव्वल तो अमेरिका मूल की प्राइवेट इक्विटी फर्म KKR थी जिसने 22 मई को इस बारे में घोषणा की।
इस घोषणा में RIL के मालिकाना हक वाली सहायक कंपनी रिलायंस जियो (Reliance Jio) प्लेटफॉर्म में 2.32% हिस्सेदारी के लिए 11,367 करोड़ रुपये का सौदा शामिल रहा।
अबु धाबी का इंटरेस्ट -
दूसरे सौदे का वास्ता अबु धाबी स्टेट निवेश कोष की मुबाडला इन्वेस्टमेंट कंपनी के नाम से है। इसकी घोषणा हाल ही में 5 जून को हुई। कुल 9,093.6 करोड़ रुपयों के इस सौदे का मकसद जियो प्लेटफॉर्म में 1.85 फीसद अधिकार हासिल करना रहा।
दो दिन पहले -
समाचार माध्यम NDTV ने इस करार के दो दिन पहले 3 जून को बताया था कि दो और पश्चिम एशियाई संप्रभु धन कोष समूहों से भी Jio प्लेटफार्मों में निवेश की चर्चा चरम पर है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस करार के जानकार सूत्रों ने अबु धाबी निवेश प्राधिकरण और सऊदी अरब के सार्वजनिक निवेश कोष से भारतीय कंपनी के इस खास सौदे का हवाला दिया है।
फॉरेन लिस्टिंग प्लान!
सनद रहे...17 मई को एक मीडिया सम्मेलन में केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने अहम घोषणा की थी कि; सरकार ने भारतीय कंपनियों को उनके स्टॉक्स को विदेशों में सूचीबद्ध करने की अनुमति देने का फैसला किया है। ऐसे में मीडिया की कई रिपोर्ट्स से इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि RIL की योजना रिलायंस जियो के शेयर्स को विदेशी शेयर बाजारों में सूचीबद्ध करने की है।
इसके बाद....
शुक्रवार 5 जून को खबरदाता रायटर ने बताया कि तीन अमेरिकी निवेशकों में से एक सिल्वर लेक ने Jio प्लेटफार्म्स में 601.4 मिलियन डॉलर या 4,546 करोड़ रुपये के निवेश की मंशा जताई है।
रिलायंस टेलिकॉम विंग की जिओ इन्फोकॉम और उसकी संगीत और वीडियो स्ट्रीमिंग अप्लीकेशन्स जिसकी एंटरप्राइज़ वैल्यू तकरीबन 5,16,000 करोड़ रुपये है में सिल्वर लेक का अधिकार होगा। करार के मुताबिक इस तरह से Jio प्लेटफॉर्म्स में सिल्वर लेक की होल्डिंग एक प्रकार से सिर्फ 1% से थोड़ा अधिक बढ़कर 2% से ज्यादा हो जाएगी।
सिल्वर लेक की हैसियत -
लगभग 40 बिलियन डॉलर की संपत्ति की मालिक कैलिफोर्निया स्थित निजी इक्विटी फर्म सिल्वर लेक ने Airbnb, अलीबाबा, अल्फाबेट (Google, YouTube और Android की मूल कंपनी), ट्विटर, डेल टेक्नोलॉजीज और फिल्म थियेटर श्रंखला AMC एंटरटेनमेंट होल्डिंग्स सहित सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी कई प्रमुख कंपनियों में निवेश किया है।
यह सौदा आरआईएल के 21.4 बिलियन डॉलर के शुद्ध ऋण के निपटारे के उद्देश्य से फंड जुटाने की गतिविधियों की दिशा में भारतीय कंपनी का नवीनतम प्रयास है।
एजेंसी की रिपोर्ट -
रायटर ने पहले बताया था कि आरआईएल ने संयुक्त राज्य अमेरिका में साल 2021 की सार्वजनिक सूची में स्थान बनाने से पहले तीसरी तिमाही तक अपने निजी धन उगाहने वाले सोर्सेस के बारे में खास योजना बनाई है। रिपोर्ट्स में कहा गया है कि RIL की निगाहें यूएसए में जिओ प्लेटफॉर्म्स की पब्लिक लिस्टिंग से तकरीबन 90 से 95 बिलियन धन का मूल्यांकन हासिल करने की है।
लॉकडाउन में खुली तकदीर! -
अधिकार के मुद्दे के साथ मिलकर कंपनी 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक जुटाएगी जो वर्तमान में प्रचलित विनिमय दरों के मुकाबले 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
यह सभी फंड जुटाने की योजना पहले ही साकार हो सकती थी। हालांकि इनको उन महीनों के दौरान निष्पादित किया गया जबकि भारत COVID-19 महामारी के कारण बंद था।
मालिक का कहना -
मुकेश अंबानी ने कहा कि उन्होंने “अधिकार मुद्दे की सफलता को घरेलू-विदेशी दोनों स्तर के निवेशकों और छोटे खुदरा शेयरधारकों द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था की आंतरिक ताकत के रूप में "विश्वास मत" के रूप में देखा।”
तर्क ये भी -
ऐसे में "विश्वास मत" की सफलता पर मीडिया रिपोर्ट्स में सवाल उठे कि कैसे "विश्वास मत" की प्रक्रिया पूर्ण हुई। इस बारे में तर्क दिए जा रहे हैं कि भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और एजेंसियों द्वारा देश के सबसे अमीर आदमी और आरआईएल के लिए अधिकार-मुद्दे संबंधी नियमों को सुविधाजनक बनाया गया!
सरकारी नियमों में परिवर्तन -
RIL ने अपने राइट्स इश्यू के बारे में 16 मई को घोषणा की थी। दिलचस्प बात यह है कि यह घोषणा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और केंद्रीय कारपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के शेयरों संबंधी इस तरह के अधिकार जारी करने की इच्छुक कंपनियों के लिए नियामक आवश्यकताओं में महत्वपूर्ण छूट की घोषणा के एक पखवाड़े के बाद सामने आई।
गौरतलब है कि देश के वित्तीय बाजारों के नियामक सेबी ने 6 मई को घोषणा की कि उसने अधिकारों के मुद्दों के लिए कुछ अनुपालन आवश्यकताओं में ढील दी है।
विशेष रूप से, यह कहा गया कि राइट्स इश्यू की घोषणा और इस बाबत विज्ञापन पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम ऑनलाइन और टेलीविजन के जरिए संचालित किया जा सकता है। साथ ही जाहिर किया गया कि इस बारे में पंजीकृत डाक, स्पीड पोस्ट या कूरियर सेवा के माध्यम से कोई भौतिक सूचना देने की आवश्यकता नहीं है!
नोटिस और लॉकडाउन -
यह एक तरह से यह "पूंजी और प्रकटीकरण आवश्यकताओं के मुद्दे" की "एकमुश्त" छूट थी, जिसे आम तौर पर अधिकार जारी करने से पहले एक कंपनी द्वारा इस तरह के भौतिक नोटिस की आवश्यकता होती है।
हालांकि सेबी ने इस बारे में घोषणा की कि उसने COVID-19 महामारी के कारण अखिल भारतीय तालाबंदी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग संबंधी आवश्यकताओं के मद्देनजर यह छूट दी है।
परिपत्र में उल्लेख -
एक सप्ताह से भी कम समय के बाद, 11 मई को, MCA ने SEBI की घोषणा के संबंध में एक परिपत्र जारी किया। एमसीए के परिपत्र में घोषणा थी कि मंत्रालय को सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा अधिकारों के मुद्दों के लिए नोटिस जारी करने के तरीके पर स्पष्टीकरण प्रदान करने के लिए कई अभ्यावेदन प्राप्त हुए थे।
परिपत्र में स्पष्ट किया गया कि राइट्स इश्यू जो 31 जुलाई, 2020 तक खुल रहे थे और जो सेबी की 6 मई की घोषणाओं के अनुरूप थे, उन्हें अनुमति दी जाएगी और उन्हें कंपनी अधिनियम 2013 का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।
वित्त मंत्री की घोषणा -
इसके बाद 17 मई को वित्त मंत्री सीतारमण ने आर्थिक उपायों के सरकार के "राहत पैकेज" संबंधी एक मीडिया सम्मेलन में इसी तरह की छूट की घोषणा की।
उन्होंने घोषणा की कि MCA ने समय पर कार्रवाई के हिस्से के रूप में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत अनुपालन के बोझ को कम करने के लिए डिजिटल रूप से कार्रवाई संचालित करने के लिए राइट्स इश्यू संबंधी अनुमति दी थी। ऐसे में कुछ एक्सपर्ट्स का तर्क है कि अब ऐसा होता प्रतीत हो रहा है कि अब तक नियमों में हुए इन परिवर्तनों से लाभान्वित होने वाली एकमात्र कंपनी RIL है।
नैस्डैक पर विचार -
इस दौरान सामने आई बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक रिलायंस जियो अपनी लिस्टिंग के मुफीद ठिकाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के शेयर बाजार नैस्डैक पर विचार कर रहा है।
वित्त मंत्री सीतारमण ने 17 मई को मीडिया सम्मेलन में इस बात का पटाक्षेप कर दिया कि भारतीय कंपनियों को अब योग्य विदेशी न्याय क्षेत्रों में अपनी प्रतिभूतियों को सीधे सूचीबद्ध करने की अनुमति दे दी गई है।
क्या है नैस्डैक –
दरअसल “नैस्डैक” नेशनल एसोसिएशन ऑफ सिक्योरिटीज डीलर्स ऑटोमेटेड कोटेशन सिस्टम के लिए एक संक्षिप्त नाम है। यह एक इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज है जहां स्टॉक्स की ट्रेडिंग फ्लोर के बजाय कंप्यूटर के स्वचालित नेटवर्क के माध्यम से होती है। बाजार पूंजीकरण के मामले में यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है।
सवाल उठते हैं -
मशहूर स्वतंत्र पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने वित्त मंत्रालय समेत कई विभागों को इस संबंध में प्रश्नावली के जरिये ईमेल कर कुछ सवालों के जवाब मांगे थे। जिनमें से अहम सवालों में से कुछ इस प्रकार हैं –
अधिकारों के मुद्दों पर शेयरधारकों को नोटिस देने से पहले 11 मई को एमसीए ने किन कंपनियों और/या उद्योग निकायों से अपना प्रतिनिधित्व प्राप्त किया था?
ईमेल में यह आरोप लगाया गया है कि केवल एक कंपनी (Reliance Industries Limited) को MCA के स्पष्टीकरण से लाभ हुआ है।
एमसीए और वित्त मंत्रालय (MoF) में भारतीय कंपनियों को अपनी प्रतिभूतियों को सीधे सूचीबद्ध करने की अनुमति देने से पहले क्या विचार-विमर्श और परामर्श प्रक्रियाएं की गईं?
दोनों मंत्रालयों को किन उद्योग कंपनियों, उद्योग संस्थाओं या वकालत समूहों के द्वारा क्या प्रतिनिधित्व मिला?
क्या सरकार के फैसले भारत के शेयर बाजारों में विश्वास की कमी नहीं दिखाते हैं?
जब भारत सरकार रुपए के मूल्य पर प्रतिभूतियों के लिए देश के भीतर एक मजबूत वातावरण बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि भारतीय बाजारों में तरलता के साथ कारोबार किया जाए। ऐसे समय में भारतीय कंपनियों को विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करने की अनुमति से क्या इस नीति पर असर नहीं पड़ेगा?
क्या भारतीय कंपनियों को अपने इक्विटी शेयरों को पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता की ओर अधिक आसानी से सूचीबद्ध करने की अनुमति है?
सवाल सेबी चेरमैन से -
इसके साथ ही सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी को भी एक प्रश्नावली भेजी गई। जिसकी एक प्रति बोर्ड के कम्युनिकेशन विभाग के नाम पर भी संलग्न थी। इसमें कुछ इस तरह के सवालों-मुद्दों का जिक्र था।
6 मई, 2020 को, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने मूल्य निर्धारण दिशा निर्देशों में छूट का प्रस्ताव रखा है। इसमें प्राथमिक शेयर आवंटन और तनावग्रस्त कंपनियों में निवेश के मामले में अधिग्रहण के लिए एक खुली पेशकश करने वाले वित्तीय निवेशकों के लिए छूट का उल्लेख है।
इसी विषय पर 22 अप्रैल को जारी एक चर्चा पत्र में सेबी ने कहा था कि उसे कई प्रतिनिधित्व मिले थे कि शेयरों के प्राथमिक आवंटन के लिए मूल्य निर्धारण संबंधी दिशा निर्देश वित्तीय निवेशकों के लिए बेहतर थे।
इस बारे में जिम्मेदारों से सवाल किये गए थे कि 6 मई, 2020 को आईपीओ (प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव) और राइट्स इश्यू के माध्यम से अपने प्राथमिक फंड जुटाने के मानदंडों को शिथिल करने के प्रस्ताव से पहले सेबी को कंपनियों या उद्योग निकायों ने कौन से प्रतिनिधित्व प्राप्त हुए?
6 मई की छूट के बाद से, किन कंपनियों ने छूट की शर्तों के तहत राइट्स इश्यू और आईपीओ के माध्यम से फंड जुटाने की कवायद की है?
प्रश्नावली में यह दावा किया गया कि SEBI की छूट से केवल एक कंपनी (Reliance Industries Limited या RIL) को फायदा हुआ है। साथ ही दावा सही होने की दशा में संबंधितों से जवाब मांगा गया।
क्या सेबी को लगता है कि उसके पास संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह सिक्योरिटीज और एक्सचेंज (SEC) की ही तरह पर्याप्त प्रबंध हैं, जो प्रतिभूतियों के सौदे में धोखाधड़ी के मामलों से निपटने में कारगर हों?
क्या इस संदर्भ में सेबी ने सरकार को अपनी न्यायिक शक्तियों को बढ़ाने के लिए लिखा है? यदि हां तो क्या इस संचार को साझा किया जा सकता है?
RIL का "ड्राफ्ट लेटर ऑफ ऑफर" सेबी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है। क्या आरआईएल को सेबी के साथ हाल ही में शेयरों के लिए जारी राइट्स इश्यू के लिए "ड्राफ्ट लेटर ऑफ ऑफर" दाखिल करने से छूट दी गई थी?
स्टॉक एक्सचेंजों के साथ दायर किए जाने वाले प्रस्ताव के अंतिम पत्र के साथ ही पहले सेबी को ड्रॉफ्ट लेटर ऑफ ऑफर दाखिल किया जाता है।
क्या SEBI शेयर अधिकार जारी करते समय सेबी के पास दाखिल करने से RIL जैसी बड़ी कंपनियों को छूट देता है और उन्हें सीधे स्टॉक एक्सचेंजों के साथ अंतिम पत्र की पेशकश करने की अनुमति देता है?
सवाल NSE से -
इसी तरह की दो समान प्रश्नावली राष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी विक्रम लिमये और एक्सचेंज के संचार विभाग के प्रतिनिधियों के साथ-साथ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ आशीष चौहान को भी भेजी गई थीं। जिसमें इन सवालों और मुद्दों का उल्लेख था।
केंद्र सरकार ने हाल ही में डिजिटल माध्यमों से भारतीय कॉर्पोरेट्स की इक्विटी और डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स के विक्रय की अनुमति दी है। आपका क्या कहना है?
इसके अलावा, सरकार ने भारतीय कंपनियों को विदेशी क्षेत्राधिकार में अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध करने की अनुमति दी है। इन फैसलों पर आपकी क्या टिप्पणियां हैं?
क्या सरकार के फैसले भारत के शेयर बाजारों में विश्वास की कमी नहीं दिखाते हैं?
जब भारत सरकार रुपए के मूल्य पर प्रतिभूतियों के लिए देश के भीतर एक मजबूत वातावरण बनाने का प्रयास कर रही है, ताकि भारतीय बाजारों में तरलता के साथ कारोबार किया जाए। ऐसे समय में भारतीय कंपनियों को विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध करने की अनुमति से क्या इस नीति पर असर नहीं पड़ेगा?
नियमों को क्यों बदला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक SEBI की प्राथमिक बाजार सलाहकार समिति के एक पूर्व सदस्य ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि “भारतीय कॉरपोरेट्स को डिजिटल माध्यम से इक्विटी और डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स को बेचने की अनुमति देने का यह मुद्दा कई वर्षों से लंबित था।”
वास्तव में, सेबी पैनल ने दिसंबर 2018 में इस कदम की सिफारिश करते हुए एक रिपोर्ट पेश की थी। विभिन्न लॉबी समूह इस विषय पर काफी वर्षों से चर्चा कर रहे हैं। सवाल यह नहीं है कि यह एक अच्छा निर्णय है या नहीं? बल्कि बड़ा सवाल यह है कि ‘अब क्यों? जब पूरी दुनिया कोविड-19 संकट के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रही हो!
गरीब या अमीर –
सवाल उठना लाजिमी है कि क्या सरकार और वित्त मंत्री को गरीबों की मदद करने पर ध्यान नहीं देना चाहिए? क्या यह समय की जरूरत नहीं है, बजाय भारत की सबसे बड़ी निजी कॉर्पोरेट इकाई की मदद करने के?
एक अन्य एक्सपर्ट ने नाम की गोपनीयता की शर्त पर कहा कि उन सौदों के विपरीत जिन्हें PIPE (प्राइवेट इन्वेस्टमेंट्स इन पब्लिक इक्विटी) कहा जाता है, रिलायंस जियो में अब तक किए गए निवेश असूचीबद्ध संस्थाओं संबंधी हैं।
उल्लेखनीय है कि यह एकमात्र नहीं बल्कि ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें असूचीबद्ध सहायक कंपनियों में निवेश की घोषणा तब तक नहीं की जाती है, जब तक कि संबंधित निवेशक ने पैसे का भुगतान और कंपनी ने शेयर जारी न कर दिए हों।
कर्ज का बोझ -
सूत्रों के मुताबिक वर्तमान में RIL की सभी संभावना नेट फ्री कैश फ्लो निगेटिव की है। साथ ही सेवा संबंधी ब्याज का बोझ 15,000 करोड़ रुपया सालाना है। इसके अलावा यह बोझ कंपनी की जामनगर रिफायनरी के सकल रिफायनिंग अंतर को देखते हुए बड़ा लगने लगेगा। इसमें परिचालन जटिलता का स्तर उच्च है। साथ ही इकाई में पिछले एक साल के दौरान भारी गिरावट आई है खास तौर पर हालिया तिमाही में।
ये आस है बड़ी -
फिर भी, भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी ने अपने शेयरधारकों और विदेशी निवेशकों को आश्वस्त किया है कि उन्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। भले ही दुनिया की अर्थव्यवस्था कठिनाई में क्यों न हो!
यूएस-आधारित निवेशकों का स्पष्ट रूप से मानना है कि उनके निवेशों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि रिलायंस जियो के शेयर नैस्डैक पर सूचीबद्ध होने के बाद वे (विदेशी निवेशक) बढ़िया रिटर्न हासिल करेंगे।
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डिस्क्लेमर – आर्टिकल प्रचलित रिपोर्ट्स पर आधारित है। इसमें शीर्षक-उप शीर्षक और संबंधित अतिरिक्त प्रचलित जानकारी जोड़ी गई हैं। इस आर्टिकल में प्रकाशित तथ्यों की जिम्मेदारी राज एक्सप्रेस की नहीं होगी।
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