Damage to Indian GDP due to the lockdown  Kavita Singh Rathore -RE
व्यापार

बंद से भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान?

भारत समेत दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं में इस बार मंदी की समस्या पिछली बार साल 2008-2009 में उपजी मंदी की तुलना में और अधिक विकराल हो सकती है।

Author : Neelesh Singh Thakur

हाइलाइट्स :

  • इंडियन इकोनॉमी पर चौतरफा चोट !

  • लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर कितना असर?

  • इकोनॉमी को पटरी पर लाने क्या हैं सही उपाय?

  • रेटिंग एजेंसी ने विकास दर अनुमान में क्यों की कटौती?

राज एक्सप्रेस। विशाल राष्ट्र भारत में जारी 21 दिनों के लॉकडाउन के कारण बस, कार, ट्रेनों के पहिये थम गए हैं, उड़ानों पर विराम लग गया है। ठीक ऐसा ही कुछ हुआ है भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ भी। इन 21 दिनों में इंडियन इकोनॉमी में क्या कुछ बदलने वाला है जानिए इस पड़ताल में-

पीएम की अपील :

कोरोना वायरस डिसीज़ 2019 यानी COVID19 के बढ़ते संक्रमण पर नकेल कसने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया है। मंगलवार को रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश में 21 दिनों तक घर में रहकर आपात स्थिति से निपटने में सहयोग प्रदान करने की अपील नागरिकों से की है।

चौतरफा चोट :

जारी जनहित कर्फ्यू में दैनिक जीवन निर्वहन के लिए जरूरी सेवाओं के अलावा अन्य कारोबार, सेवाओं पर रोक लगा दी गई है। यातायात, सार्वजनिक आयोजन के साथ ही आवाजाही पर रोक लगाने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर एकाएक चौतरफा और बड़ी चोट पड़ी है।

कोरोना अटैक :

भारतीय अर्थव्यवस्था की धुरी ऑटोमोबाइल, रियल स्टेट सेक्टर्स समेत लघु उद्योग और असंगठित निर्माण क्षेत्र की पिछले साल से हालत पतली थी। अब कोरोना अटैक के कारण दुनिया में उपजे हालात से भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत भी ठीक नहीं कही जा सकती। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कोरोना वायरस अटैक बहुत बड़ी परेशानी का सबब बनता नज़र आ रहा है।

सरकारी उपचार :

चीन, अमेरिका, इंग्लैंड जैसे बड़े राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था की हालत किसी से नहीं छिपी। ऐसे में भारत की एनडीए सरकार ने निवेश, सरकारी नियमों में छूट जैसी राहत संग आर्थिक मदद से इकोनॉमी को पटरी पर लाने की भरसक कोशिश की है।

मांग और पूर्ति :

तीन सप्ताह के लॉकडाउन के कारण कारखानों, दुकानों पर ताला लटका है, लोग घरों में अटके हैं। दैनिक उपयोग की जरूरी चीजों को खरीदने-बेचने की छूट है, जबकि टीवी, कार, मोबाइल के अलावा विलासिता की दूसरी चीजों के कारोबार पर विराम लगा हुआ है। ऐसे में मांग, निर्माण और आपूर्ति का गणित गड़बड़ाने से अर्थव्यवस्था भी कुछ हद तक असंतुलित होगी इसमें कोई शक नहीं।

जीडीपी ग्रोथ :

भारत के ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रॉडक्शन (जीडीपी) यानी सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर अनुमान घटने की बात की जा रही है। इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (S&P) की सोमवार को जारी रेटिंग्स की मानें तो अप्रैल से शुरू होने वाले आगामी वित्तीय वर्ष (2020-21) में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट अनुमानित रूप से 5.2 फीसदी रहेगी।

पूर्व में यह अनुमान 6.5 फीसदी आंका गया था। जबकि एजेंसी ने इसके पहले वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए इंडियन इकोनॉमी की जीडीपी ग्रोथ रेट में 7 फीसदी का अनुमान जताया था लेकिन ताजा गणना के मुताबिक अब ग्रोथ रेट 6.9 फीसदी रहने का अनुमान एजेंसी ने जताया है। एजेंसी का मानना है कि कोरोना वायरस से उपजे हालात के कारण एशिया-प्रशांत एरिया को तकरीबन 620 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ सकता है।

कारोबार कनेक्शन :

लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ लघु एवं मध्यम उद्योग धंधों पर बुरा असर पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद में पचास फीसदी योगदान इन्हीं अनौपचारिक उत्पादन सेक्टर्स का है। ऐसे में अंतर को साफ समझा जा सकता है। कच्चे माल की खपत से लेकर उत्पादन की चेन गड़बड़ाने से रोजगार तक पर ताला डल गया है।

फिलहाल तो ऊंची ब्याज दर पर लोन लेने वाले छोटे कारोबारी कोरोना वायरस संकट के कारण बड़ी मुसीबत में फंसते दिख रहे हैं। अनौपचारिक सेक्टर्स में शामिल फेरी वाले, आर्टिस्ट, स्मॉल इंडस्ट्री और सीमा पार व्यापार जैसे; ऐसे क्षेत्र जिनसे सरकार को टैक्स नहीं मिलता लॉकडाउन के कारण बड़े पैमाने पर प्रभावित नजर आ रहे हैं।

तिहरी मार :

कोरोना संग लॉकडाउन का प्रभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर समझा जा सकता है। नोटबंदी समेत माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के बाद अब कोरोना सहित लॉकडाउन की तिहरी मार असंगठित क्षेत्र की कमर तोड़ने के लिए काफी कही जा सकती है।

वर्क एट होम :

ऑनलाइन कामकाज से जुड़ी कंपनियों के लिए तो कोरोना वायरस उतनी परेशानी वाली बात नहीं क्योंकि कंपनी सदस्य अपने मौजूदा ठिकानों से ऑनलाइन कामकाज के जरिये योगदान दे सकते हैं। फिलहाल परेशानी उन सेक्टर्स के लिए ज्यादा है जहां कर्मचारियों को भौतिक रूप से संस्थान में काम करने के लिए उपस्थित होना जरूरी है। सार्वजनिक कामकाज के क्षेत्रों पर लॉकडाउन की मार पड़ी है इससे भी इंडियन इकोनॉमी का बड़ा पक्ष प्रभावित हुआ है।

कोरोना वायरस के कारण घोषित लॉकडाउन का सर्वाधिक असर एविएशन, पर्यटन और होटल सेक्टर्स पर पड़ रहा है। उड़ानों पर प्रतिबंध लगने और उनको सीमित करने से ऑपरेटर्स के सामने कर्मचारियों के वेतन और यानों के रखरखाव तक का बड़ा संकट आन खड़ा हुआ है। कमोबेश यही हाल टूरिज़्म इंडस्ट्री का है जहां ऐन गर्मियों की छुट्टियों के मौके पर यह लॉकडाउन किसी बड़े धक्के से कम नहीं।

बैंक एनपीए :

जानकारों ने हालांकि बैंकिग सेक्टर को तो कोरोना और लॉकडाउन के झटकों से कम प्रभावित बताया है लेकिन उनकी राय है कि इन हालात में बैंक का लोन कारोबार जरूर कुछ दिनों के लिए ठप्प हो जाएगा। उनकी राय है कि लोगों को कर्ज लौटाने में परेशानी पैदा होने से बैंकों में एनपीए भी बढ़ सकता है।

मंदी तब और अब :

साल 2008-2009 में भी एक दौर आया था जब दुनिया ने मंदी का दौर देखा था। इस दौर में कई कंपनियां बंद हुईं, जिससे एक साथ कई लोग बेरोजगार हो गए थे। जानकार मानते हैं कि भारत समेत दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओँ में इस बार मंदी की समस्या पिछली बार साल 2008-2009 में उपजी मंदी की तुलना में और अधिक विकराल हो सकती है।

गौरतलब है 2008 की मंदी में सरकार को मात्र कुछ एक सेक्टर्स को ही आर्थिक राहत देना पड़ी थी जबकि मौजूदा परिस्थिति में कोरोना और लॉकडाउन के कारण हर एक सेक्टर के लिए आर्थिक मदद दे पाना सरकार के लिए कितना संभव होगा? यह यक्ष प्रश्न है।

विदेशी निवेश :

कोविड 19 से चीन-अमेरीका जैसी मजबूत अर्थव्यवस्थाओं समेत कई संपन्न देशों के सामने संकट के हालात हैं। ऐसे में भारत में अर्थव्यवस्था को फिर मजबूत करने की कोशिश भी प्रभावित होगी। विदेशी कंपनियों का कारोबार प्रभावित होने और उनके नुकसान में होने की स्थिति में भारत में विदेशी निवेश के मार्फत अर्थव्यवस्था सुधारने के जतन को भी धक्का पहुंचेगा।

नुकसान नौ लाख करोड़ :

अर्थजगत के जानकारों की रिपोर्ट के मुताबिक तीन सप्ताह के राष्ट्रव्यापी बंद के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तकरीबन 120 अरब डॉलर (लगभग नौ लाख करोड़ रुपये) का लॉस हो सकता है। यह नुकसान भारत के सकल घरेलू उत्पाद का चार फीसदी है। जारी रिपोर्ट में भारत की आर्थिक वृद्धि दर अनुमान में भी कटौती की गई है।

बिज़नेस जगत की नजरें अब रिजर्व बैंक की तीन अप्रैल को होने वाली अगली द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के निष्कर्षों की घोषणा पर टिकीं हैं। इंडस्ट्री को आरबीआई से नीतिगत दर में कटौती की आस है।

वृद्धि दर अनुमान :

रिसर्च एडवाइज़री कंपनी बार्कलेज़ ने फाइनेंसियल ईयर 2020-21 में वृद्धि दर के अनुमान में 1.7 प्रतिशत की कटौती की है। उसका अनुमान है कि यह इस वित्तीय वर्ष में 3.5 प्रतिशत रहेगी। कंपनी का अनुमान है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की कीमत लगभग 120 अरब डॉलर यानी जीडीपी के चार फीसदी के समानांतर हो सकती है।

रिसर्च में तीन सप्ताह के लॉकडाउन से 90 अरब डॉलर के नुकसान का अनुमान जताया गया है। जबकि कुल 120 अरब डॉलर के लॉस में महाराष्ट्र और भारत के अन्य राज्यों में हुए बंद से उपजे नुकसान को भी शामिल किया गया है।

मूडीज का मूड :

ग्लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कैलेंडर ईयर 2020 के लिए भारत के GDP अनुमान में भारी कटौती करते हुए सिर्फ 2.5% ग्रोथ का अनुमान लगाया है। वायरस के दंश से प्रभावित देशों की इकोनॉमिक ग्रोथ को रेटिंग एजेंसियों ने अपने कैल्कुलेशन में घटाया है। मूडीज ने भी भारत की जीडीपी को 5.3 प्रतिशत से घटाकर मात्र 2.5 फीसदी कर दिया है।

कोरोना के दंश से प्रभावित देशों के हालात किसी से नहीं छिपे। मीडिया रिपोर्ट्स में इसे अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का नतीजा तक बताया जा रहा है। आर्थिक लेनदेन के प्रमुख केंद्र इन दोनों राष्ट्रों और उनकी अर्थव्यवस्था के हालात दुनिया को प्रभावित करने के लिए काफी हैं।

ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था के नुकसान और उसे कम करने के लिए निश्चित ही आर्थिक नीति पर चिंतन बहुत जरूरी है लेकिन महामारी घोषित कोरोना से निपटने किए जा रहे भारत सरकार के प्रयत्न और भारतीयों के सहयोग की भी उतनी ही सराहना जरूरी है। अर्थव्यवस्था से पहले जीवन जरूरी है, क्योंकि जान है तो जहान है।

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