आरबीआई एमपीसी में छह सदस्य होते हैं, जो ब्याज दरों को घटाने, बढ़ाने पर फैसला लेते हैं
इससे पहले अगस्त में भी एमपीसी की बैठक हुई थी, जिसमें ब्याज दरों को स्थिर रखा गया था
राज एक्सप्रेस। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो माह में होने वाली मौद्रिक समीक्षा बैठक आज बुधवार से शुरू हो गई है। इस तीन-दिवसीय बैठक में नीतिगत रेपो दर को बढा़ने या स्थिर रखने की मौजूदा आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा की जाएगी। एमपीसी में छह सदस्य होते हैं, जिनकी अध्यक्षता आरबीआई गवर्नर करते हैं। समीक्षा बैठक में महंगाई डेटा, वैश्विक अर्थव्यवस्था और अन्य केंद्रीय बैंकों की ओर से लिए जा रहे निणर्य के मुताबिक ब्याज दरों को घटाने, बढ़ाने एवं स्थिर रखने का निर्णय लिया जाता है। इससे पहले अगस्त में एमपीसीसी की बैठक हुई थी, जिसमें ब्याज दरों को बढ़ाने का निर्णय लिया गया था।
बैठक में किए गए फैसलों की घोषणा शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास करेंगे। रिजर्व बैंक ने अप्रैल, जून और अगस्त में रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था। रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर आरबीआई, अपने अधीन काम करने वाले बैंकों को कर्ज देता है। माना जा रहा है कि वैश्विक चुनौतियों, महंगाई और विनिर्माण सेक्टर में पैदा हुए दबावों की वजह से केंद्रीय बैंक इस बार भी रेपो रेट को स्थिर रखेगा। केद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास छह अक्तूबर शुक्रवार को बैठक में लिए गए फैसलों का ऐलान करेंगे। बाजार के प्रतिभागी केंद्रीय बैंक की एमपीसी मीटिंग के ऐलान और नीतिगत रुख की बारीकी से नजर बनाए हुए हैं। आरबीआई आमतौर पर एक वित्तीय वर्ष में छह द्वि-मासिक बैठकें आयोजित करता है, जहां यह ब्याज दरों, धन की आपूर्ति, मुद्रास्फीति दृष्टिकोण और विभिन्न व्यापक आर्थिक संकेतकों पर विचार-विमर्श किया जाता है।
रिजर्व बैंक ने अप्रैल, जून और अगस्त में रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था। रेपो रेट वह ब्याज दर होती है जिस पर आरबीआई दूसरे बैंकों को कर्ज देता है। अधिकांश एजेंसियों और विशेषज्ञों की राय है कि मौद्रिक नीति समिति अक्टूबर की बैठक में नीतिगत दर को वर्तमान स्तर पर ही रखेगी। रिजर्व बैंक ने अगस्त में 'रेटव्यू- क्रिसिल का निकट भविष्य की दरों पर परिदृश्य' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में कहा है कि 2024 की शुरुआत में नीतिगत दर में 25 बेसिस प्वांइंट के कटौती की फिलहाल सशर्त संभावना है। इनफॉर्मिक्स रेटिंग्स का यह भी मानना है कि आरबीआई लगातार चौथी बार रेपो दर को अपरिवर्तित रखेगा। खुदरा मुद्रास्फीति के एमपीसी की 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा को पार करने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आक्रामक रुख को देखते हुए रिजर्व बैंक लगातार चौथी बार रेपो दर को अपरिवर्तित रख सकता है।
मुद्रास्फीति विकसित अर्थव्यवस्थाओं सहित कई देशों के लिए चिंता का विषय रही है, लेकिन भारत महंगाई अच्छी तरह से नियंत्रित रखने में कामयाब रहा है। मुद्रास्फीति के खिलाफ लड़ाई में आरबीआई ने मई के बाद से रेपो दर को बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। ब्याज दरों को बढ़ाना एक मौद्रिक नीति का वह उपाय है जो आम तौर पर अर्थव्यवस्था में मांग को दबाने में सहायक होता है, जिससे मुद्रास्फीति दर में गिरावट में मदद मिलती है। गेहूं, चावल और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़कर 7.8 प्रतिशत पर पहुंच गई थी जो फिर अगस्त में घटकर 6.8 प्रतिशत पर आ गई। अगस्त की मौद्रिक नीति बैठक के बाद रिजर्व बैंक ने 2023-24 के लिए देश की खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को संशोधित कर 5.4 प्रतिशत कर दिया है। जबकि जून की मौद्रिक नीति की बैठक में इसके 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था।
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