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भारतीय स्टार्टअप्स ने 2 साल में 1 लाख युवाओं को नौकरी से निकाला, कंपनियों ने घटाई अपनी वर्कफोर्स

पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में इस तरह के आर्थिक दबाव निर्मित हुए हैं, जिसकी वजह से लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां खोनी पड़ी हैं।

Aniruddh pratap singh

राज एक्सप्रेस। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में इस तरह के आर्थिक दबाव निर्मित हुए हैं, जिसकी वजह से लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां खोई हैं। इन आर्थिक दबावों से निपटने के क्रम में दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़ी संख्या में अपनी वर्कफोर्स में कमी की है। छंटनी की इस चपेट में केवल नए लोग ही नहीं आए हैं। लंबे समय से काम करने वाले सीनियर लोगों को भी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। कंपनियों से छंटनी सिर्फ ग्लोबल स्तर पर ही नहीं की गई, भारत में भी बड़े पैमाने पर लोग नौकरियों से निकाले गए।

स्टार्टअप्स में बताई संख्या से तीन गुना ज्यादा हुई छंटनी

छंटनी की चपेट में बड़ी और छोटी कंपनियां समान रूप से आई हैं। बड़ी कंपनियों के साथ ही भारी शोर-शराबे के साथ शुरू किए गए स्टार्टअप्स ने भी लोगों को नौकरियों से निकाला है। भारत में एक समय की तेजी से उभर रहा स्टार्टअप इकोसिस्टम गंभीर नौकरी संकट का सामना कर रहा है। स्टाफिंग फर्मों और हेडहंटर्स के अनुसार, स्टार्टअप में छंटनी सार्वजनिक रूप से बताई गई तुलना में कम से कम तीन गुना अधिक होने का अनुमान है।

सभी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर की निकासी

पिछले कुछ समय में स्टार्टअप से बहुत बड़ी संख्या में कर्मचारी निकाले गए हैं। पिछले 24 महीने यानी दो साल के दौरान 1,400 से ज्यादा कंपनियों ने 91 हजार के करीब कर्मचारियों को नौकरी से निकाला है। हायरिंग फर्म टॉपहायर के आंकड़ों से पता चलता है कि छंटनी के ध्यान में रखते हुए निकाले गए कर्मचारियों की संख्या 120,000 तक पहुंच सकती है। भारत में स्टार्टअप कंपनियों द्वारा की जाने वाली छंटनी की बात करें तो इसमें यूनिकॉर्न या 1 बिलियन डॉलर या उससे अधिक मूल्य के स्टार्टअप भी शामिल हैं। चाहे वह बायजू, अनएकेडमी, ब्लिंकिट, मीशो, वेदांतु, ओयो हो या फिर ओला, कार्स24 या उड़ान, सभी ने बड़े पैमाने पर अपने कर्मचारियों की संख्या को कम किया है।

फंडिंग कम होने से ज्यादा हुई छंटनी

सार्वजनिक तौर पर मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दो साल के दौरान 25,000 से 28,000 कर्मचारियों की छंटनी की गई है। ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि तरलता संकट के कारण धन की कमी हो गई। जिससे भारत में कई स्टार्टअप कंपनियों को अपने मासिक खर्चों में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आर्थिक दबाव निर्मित होने की वजह से स्टार्टअप्स को मार्केटिंग खर्चों में कटौती करने और लागत को फिर से व्यवस्थित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

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